________________
ISIBIDIOHIBIDISHUBHEHonousvsSINGHBHOHDRANI...I...I.1000
-naom
BONUSHMISH
मुनि कार्तिकेय । - [११५ महिलाओंमें भी प्राण हैं. वह भी सन्मानपूर्वक सुखी जीवन वितानेकी लालसा रखती हैं। उनकी अभिलाषाओंको कुचलने का किसीको क्या अधिकार है। वह भी मनुष्य हैं--मनुष्यजातिका अधिक मूल्यशाली अङ्ग है। राष्ट्रको बनाने और बिगाडनेवाले लाल उन्हींकी गोदमें पलते और बड़े होते हैं। उनका अपमान राष्ट्रका अधःपात है। मा, मैं ऐसे पतित राज्यमें नहीं रह सक्ता।'
कुमारके इन वचनोंने रानीका स्वात्माभिमान जागृत कर दिया। उसकी आखोंमें तेज चमकने लगा, दृढ़ निश्चयसे उसने कहा.-'बंटा! तुम ठीक कहते हो, यह अन्यायी राज्य है। धर्मात्मा लोग यहां नहीं रह सक्ते । चलो, मैं भी तुम्हारे साथ दूसरे देशको चलगी!'
पहाडी प्रदेश था, चारो ओर भोले-भाले पहाडी लोग ही दिखते थे, किन्तु उनके बीच सौम्य मूर्तिके धारक एक स्त्री और एक युवक थे। एक छोटीसी पहाड़ीपर उन्होंने अपनी कुटिया बना ली थी । उमीमें वह रहने थे और उसके सामने ही बैठ कर वे भोले पहाड़ियोंको मनुष्य जीवनका रहस्य समझाते थे। पासमें ही खेत था-युवक उसको जोतता और बोता था तबतक स्त्री घरका काम धंधा करती थी। फिर दोनों ही मिलकर उन पहाड़ी गंवारोंको सरस्वतीका पाठ पढ़ाने थे। उनके सुख दुखकी बातें सुनते थे और यथाशक्ति उनके कष्टोंको मेंटते थे। उनके मैत्रीभावने सच ही पहा. ड़ियोंको उनका सेवक बना लिया था । वे सब उ, अाना महान् उपकारक समझते थे। यह कोई नहीं जानता था कि यह राजकुमार हैं और स्त्री गजगनी । सचमुच वे कार्तिक और उसकी मा थे !