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४८ पतितोद्धारक जैनधर्म ।
" वह बहुत सुन्दरी है।" " ऐमा ! तुम एक काम करो तो बुलाक भी देदूंगी। करोगे?"
" तुम जाकर अपनी प्यारी वेश्याका नंगा बदन सिरसे पैरतक खूब देखकर आओ, मैं बुलाक देदूंगी।"
वेमनाने जल्दी ही वेश्याके पास जाकर अपनी भावजकी बात कही। मान और लज्जाको तिलाजलि देकर वेश्याने गहनोंके लालचसे अपना नंगा बदन वेमनाको दिखाया। वेमनाने ध्यानसे उसे सिरसे पैरतक देखा। देखते ही एकदम वैगग्यसे उसका हृदय ओतप्रोत होगया। वह तुरन्त वापिस अपनी भावजके पास पहुंचे और उनके पैरोंपर गिरकर बोले:
"भौजाईजी ! आप अब मेरे लिये माता और देवीके समान है। अबतक मैं बड़ा मूर्ख था, मैं अभीतक नहीं जानता था कि जिसके लिये लाखों रुपये खर्च किये और लाखों गालियां खाई, वह केवल दुर्गध और मल मूत्रका स्थान है। वेश्या दुनियाके कलुषित पापोंकी जड़ है, केवल वेश्या ही नहीं, सारा संसार भी ऐसा है। माता ! तुम्हारे द्वारा मुझे ज्ञानदीक्षा मिली है और तुम्हारे ही कारण मैं संसारके बंधनोंसे छूट गया हूं। मैं अब इस कलुषित दुनियां में पलभर भी न रहूंगा, जाता हूं. विदा दीजिए।"
यह कहकर उन्होंने अंतिमवार भावजसे विदा ली और सदाके लिए घर छोड़ दिया!
घर छोड़कर वेमनाने योगाभ्यास किया और जंगलोंमें अकेले