Book Title: Patitoddharaka Jain Dharm
Author(s): Kamtaprasad Jain
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

View full book text
Previous | Next

Page 204
________________ १९० ] शरीर छोड़ा। उनके वंशज एक छोटासा कटापल्ली नामके गांव घर, खड़ाऊ और पोशाक अभीतक उनकी ही बतलाते हैं । अब जरा इस शूद कवि और योगीके पद्योंका रस लीजिये: पतितोद्धारक जैनधर्म । Senaissaamanandamaina 66 आलिमादुल विनि अन्त दम्मुल बासि, वेरे पोड ब ड वेरि वाड; कुक तोकवह गोदावरी दुना, विश्व अर्थात् - ' बेमना ! स्त्रियों की बातोंमें फंसकर ( वासनावश ) जो अपने भाई बंधुओंको छोड देता है, वह मूर्ख है । कहीं कोई वृत्ती पूंछ पकडकर गोदावरी नदी पार कर सकता है। " "वेमा " 1 " उप्पु कप्पुरंबु नोक्कु पेलिकलंड, चूड चूड रुचुन्न जाडवेरु; पुरुषलदु पुण्य पुरुषत्र वेरया. विश्व "वेमा । " 66 जैसे नमक और कपूर एक ही रंगके है तो भी उनके 39 ........ वादों में भेद होता है, उसी तरह पुरुषोंमें भी पुण्यात्मा और पापी पुरुष होने है ! 64 ओगु नोगु मेच्चु नोनरंग न ज्ञानी, आव मिचि मेच्चु परम टुद्ध; पंदि र मेच् पनीरु मेच्चुना, far 'येमा । " 1

Loading...

Page Navigation
1 ... 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220