Book Title: Patitoddharaka Jain Dharm
Author(s): Kamtaprasad Jain
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 185
________________ MIRIDIUMusiaunauliiamai a asiaDilaisiBIBITaaramaiaDNISODIUsinamusium बिलाती कुमार। और उसने कुयेमें किसीके गिरनेकी बात कही। भील पल्लीमें भगदड़ मच गई। देखते ही देखते कुये में गिरा हुआ आदमी निकाल लिया गया। वह भील नहीं, कोई आर्य सज्जन था। राजोंका-सा उसका ठाठ था; पर था वह बेहाल ! भीलोंने देखकर कहा- अरे, यह तो कोई राजा है !" सरदारने पूछा-'भई, तुम कौन हो ? कहांसे आये हो ?' बदहोश मनुष्यने लड़खड़ाते हुये कहा- 'उपश्रेणिक-राजगृह ।' 'राजगृहका यह कोई गजकुमार है '-यह जानकर भील सरदार उन्हें अपने डेरोंमें ले गया और उनकी सेवा-सुश्रुसा कराने लगा। सचमुच यह नवागंतु 6 मगधके सम्राट उपश्रेणिक क्षत्रोजस थे। एक बदमाश धोड़ेने उन्हें कुयेमें ल डाला ! वहांसे उनका उद्धार तिलकाने किया ! (२) 'तिलका!' 'क्यों ? क्या है ? तुमने तो घरका काम करना भी मुहाल कर दिया।' 'अब काम करके क्या करोगी ? आओ, यहा आओ मेरे हृदयकी रानी ! ' तिलकाको बरबस अपनी ओर खींचते हुबे उपनेणिकने कहा। भील पल्लीमें रहते हुये उपश्रेणिकका प्रेम युवती तिलकासे हो गया । उपश्रेणिक उसके प्रेममें ऐसे मस्त हुये कि उन्होंने उसको अपनी ची कमानेकी ठान ली !

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