________________
उपाली।
MINUOUDIOMURANU
RURNAMUNDROIDUDUS.
वैश्य हों वह आगे आये और चन्दनकाष्ठ लेकर आग बनावें, तेज प्रादुर्भूत करें। फिर वह राजा चाण्डाल, निषाद, वसोर आदि कुलोंके लोगोंसे धोबीकी कठरीकी अथवा एरेन्डकी लकड़ीसे आग सिलगानेको कहे और वे आग सिलगावें। अब आप बतायें कि क्या ब्रामगादि द्वारा सिलगाई गई आग ही आग होगी और उसीसे आगका काम लिया जायगा ? चाण्डालादि द्वारा सिलगाई गई आग क्या आग नहीं होगी और क्या वह आगका काम नहीं देगी ?"
'नहीं, गौतम ! दोनों ही आग आगका काम देंगी।' 'तो फिर वर्णगत श्रेष्ठता कैसे मानी जाय ?' 'ब्राह्मण तो जन्मसे ही अपनेको श्रेष्ठ मानते हैं।'
'तो क्या मानते हो आश्वलायन ! यदि क्षत्रियकुमार ब्रामणकन्याके साथ सहवास करे, उनके सहवाससे पुत्र उत्पन्न हो । भो क्षत्रियकुमार द्वारा ब्रामण कन्यासे पुत्र उत्पन्न हुआ है, क्या वह माताके समान और पिताके समान, 'ब्राह्मण है' 'क्षत्रिय है', कहा जाना चाहिये।
"हे गौतम कहा जाना चाहिये।"
"आश्वलायन ! यदि ब्रामणकुमार क्षत्रियकन्यासे संवास करे और पुत्र उत्पन्न हो तो क्या उसे 'बाषण है' कहा जाना चाहिये।"
"हां, गौतम ! कहा जाना चाहिये !"
"अच्छा आश्वलायन ! अब मान लो, घोड़ीको गदहेसे जोड़ा मिलायें। उनके जोड़से बछड़ा उत्पन हो। क्या यह माता-पिताके समान 'घोड़ा गया है। कहा जाना चाहिए ?"