Book Title: Patitoddharaka Jain Dharm
Author(s): Kamtaprasad Jain
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 197
________________ उपाली। somewsnanshasanmansna Hommunmahamunmun 10mahamananewssuensusnn. [१८३ जानते । उपरान्त देवलऋषिने उन पितामहको सात पीढ़ीतक ब्राह्मणीके ही पास जानेकी साक्षी चाही; जिसे भी वे ब्राह्मण न देसके। उसपर देवलऋषिने उनमे प्रश्न किया कि “ जानते है आप गर्भ कैसे ठहरता है ?" ब्राह्मणोंने कहाकि जब मातापिता एकत्र होते हैं, माता ऋतुमती होती है और गर्व (=उत्पन्न होनेवाला, सत्व) उपस्थित होता है। इस प्रकार तीनोंके एकत्रित होनेसे गर्भ ठहरता है।" देवलने पूंछा कि वह गंधर्व क्षत्रिय, ब्राह्मण, वैश्य या शूद्र कौन होता है ? ब्राह्मणोंने कहाकि हम नहीं जानते कि वह गंधर्व कौन होता है ? ऋषि बोले कि जब ऐसा है तब जानते हो कि तुम कौन हो ? ब्राह्मणोंने कहा कि हम नहीं जानते हम कौन है।" _ 'इस प्रकार हे आश्वलायन ! मसित देवल ऋषि द्वारा जातिवादके विषयमें पूछे जानेपर वे ब्राह्मण ऋषिगण भी उत्तर न देसके; तो फिर आज तुम क्या उत्तर दोगे ?" यह सुनकर आश्वलायन माणवकने बुद्धको नमस्कार किया और वह बोला- आजसे मुझे अजलिबद्ध उपासक धारण करें।" उपस्थित सजनोंपर इसका अच्छा प्रभाव पड़ा। उपालीने और भी दृढ़ताके साथ गुणोंकी वृद्धिमें चित्त लगाया ! कहां कपिलवस्तुका नाई उपाली और कहा विनयधर भिक्षु उपाली ! जाति. कुल, शरीरमें अन्तर न होनेपर भी गुणों के कारण नाई उगाली और विनयधर उपालीमें जमीन आसमान जैसा अन्तर पड़ गया। अतः मानना पड़ता है कि जाति, कुल, शरीर नहीं, गुण ही पूज्य है।

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