________________
BIBIDIOuuunusumnHDIOSITUMHARITRIBUTODHRISo9iiiiSTSIR1BLISHES
उपाली।
[१७२ बौद्ध चारित्र नियमोंका ठीक ज्ञान उपाली ही को प्राप्त था। कपिलवस्तुका नाई-यह उपाली ही विनयधरोंमें प्रमुख हुआ ! गुणोंने उसे प्रतिष्ठित पदपर का बिठाया। शुम अध्यवसायसे क्या नहीं प्राप्त होता ? बुद्ध के बाद उपालीने ही विनय धर्म (बौद्धचारित्र) का स्वरूप संबको बताया था।
उपालीने अपने उदाहरणसे चारों ही वर्गों की शुद्धि प्रमाणित कर दी। चहुं ओर यह बात प्रसिद्ध होगई। कट्टर ब्राह्मणोंको यह बात बहुत खटकी । श्रावस्तीमें नाना देशोंके पाचसौ ब्राह्मण आ एकत्र हुये । वहा उन्होंने गौतमबुद्धसे चारों वर्णोकी शुद्धि ( चातुवण्णी सुद्धि) पर शास्त्रार्थ करना निश्चय किया। ब्राह्मणोंने अपने प्रकाण्ड पंडित आश्वलायन माणवकको शास्त्रार्थ करनेके लिये तैयार किया। आश्वलायन माणवक बड़े भारी ब्राह्मणगणके साथ गौतमबुद्धके पास पहुंचे। उनसे बोले कि 'ब्राह्मण ही श्रेष्ठ वर्ण है, इस विषयमें गौतम आप क्या कहते हैं ?'
वुद्ध -"आश्वलायन ! ब्राह्मणोंकी ब्राह्मणियां ऋतुमती. गर्भिणी, जनन करती, पिलाती देखी जाती हैं। योनिमे उत्पन्न होते हुये भी वह ब्रामण ऐसा कहते हैं यही आश्चर्य है । "
'किन्तु ब्राह्मणों की मान्यता तो वैसी ही है !" ___ "तो क्या मानते हो आश्वलायन ! तु ने सुना है कि यवन और कम्बोजमें और अन्य सीमान्त देशोंमें दो ही वर्ण होते हैं।*
* जनोंके तत्वार्थसूत्र में मनुष्य जातिके कार्य और बनार्य-रही दो मेद किये है। ।