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பாமயாயன்மாய்யாயா MISTRIBUnr
राजर्षि मधु । जब वह उनके निकट पहुंचे तो उन्हें अपने नेत्रोंपर विश्वास न हुआ। उनका चोर और जुगारी पुत्र साधु होगा, यह वह सहसा न समझ पाये । प्रकृति के रहस्यको समझना है भी कठिन । सेठने फिर गौर से देखा। निश्चय वा श्रीगुप्त था । सेठक नेत्रोंमें मोहके आंसू आगये।
श्रीगुप्तने भी उन्हें देखा, वह बोला-'देखो, कैसी भ्रान्ति है; लोग माता, पिता, पुत्र. पुत्री, पत्नी आदिका रिश्ता बनाकर उनसे मोह करते है और वैसे ही मनुष्य जब उनके घरके नहीं होते तो आख उठाकर भी उनकी ओर नहीं देखते। एक बालक जो उनके घरमें जन्मा है यदि वही पड़ोसीके जन्मता तो उससे वह कुछ भी रिश्ता नहीं रखते। किन्तु भाई ! बालक तो वही है, यह विराग क्यों ? इसीलिये न कि उससे उनका कोई स्वार्थ नहीं सधेगा। संसारकी यही विडम्बना है। यहां स्वार्थका ताण्डवनृत्य होरहा है। संकी
हृदय विश्वप्रेमका महत्व नहीं समझते, वह साधुनोंमें भी अपना और परायापन देखते है ! पर साधु तो प्रकृतिके जीव हैं उनमें ममत्व कैसा १ ममत्व करते हो तो उन जैसे होजाओ।'
महीधर यह धर्मप्रवचन सुनकर पुलकितगात हो श्रीगुप्तके चरगोंमें गिर पड़ा। राजा नलने जब यह वार्ता सुनी तो वह भी उनकी वन्दना करने आया। पापमें लिप्त मनुष्य भी अवसर मिलनेपर कितनी आत्मोनति कर सक्ते है, इस बातको उन्होंने श्रीगुप्तमें प्रत्यक्ष देखा । राजा नलने अपने राज्यमें पापियोंको धर्मशिक्षा देनेका विशेष प्रबन्ध किया। मंदिरों में पहुंचकर वह अपना आत्मकल्याण करने लगे!