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महात्मा कर्णे !x
( १ )
मालती लता भौंरोंके नेहसे विकसित होरही थी और चकवी anant देखकर आनन्द मना रही थी लतायें वृक्षोंसे लिपटकर प्रणयकेलि कर रहीं थीं और हिरणी हिग्णको चाटकर प्रेम मधुरिमा विग्वेर रही थी । तब वहाँ चहुँ ओर प्रेम और नेहका ही साम्राज्य था । कुरुवंशक कारण सम्राट् पाण्डु उस आनन्दी प्रकृतिमें आत्मविस्मृत होरहे थे । माधवीलता के कुँज में बैठे हुये वह कुछ सोच रहे थे। सायंकालकी कालीमा विलीन होरही थी, पर साथ ही रात्रिका अंधकारपूर्ण चंद्रके धवल प्रकाशके शुभागमनसे दुम दबाकर भाग रहा था । पाण्डुको इस लुकाछिपी और भाग-दौड़का कुछ भी ध्यान न था, किन्तु उनका ध्यान एक रमणीकी पगध्वनिमे भंग होगया । वह हड़बडाकर कुंजके कोने में छिप रहे । रमणी सामने आगई थी - पाण्डुने समझा पूर्ण शशि ही इस वसुधाको रंजायमान करनेके लिये वहां आई है । वह एकटक रमणीकी ओर निहारता रहा । उन्नत मालमें हिरणीकीसी बड़ी २ आंखें उन्हें बड़ी प्यारी लगीं। पीठपर लहराते हुये काले केशपाशने उनपर अपना जहर चढ़ा दिया | वह दिव्यता भूलकर मानवता आफंसे । कामनेत्रोंसे रमणीमें उन्होंने अपनी हृदय सम्राज्ञी कुन्ती के दर्शन किये - पाण्डुका मन-मयूर नाच उठा । उसने कहा- 'हां! यही तो कुन्ती x हरिवंशपुराण पृ० ४३० पर मूळ कथा है ।