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पाप - पडू से निकलकर धर्मकी गोद में ।
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" महापापप्रकर्ताऽपि प्राणी श्रीजैनधर्मतः । भवेत् त्रैलोक्य संपूज्यो धर्मात्कि भो परं शुभम् ॥” अर्थात् 'घोर पापको करनेवाला प्राणी भी जैनधर्म धारण करनेसे त्रैलोक्य पूज्य होजाता है। धर्मसे बढ़कर और शुभ वस्तु है ही क्या ? '
कथायें:
१-चिलाती पुत्र | २- ऋषि शैलक ।
३ - राजर्षि मधु ।
४- श्रीगुप्त । ५- चिलातिकुमार |