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अपि सैक...........[१४७ अन्य नगरवासी वन्दना करने और धर्म सुननेके लिये उनके निकट पहुंचे। शुकऋषिके धर्म प्रवचन सुनकर वह राजा बोला
“हे देवानुप्रिय ! मैं आपके निकट दीक्षा लेकर विषय कषायोंसे मुक्त होना चाहता हूं। मैं मंडूककुमारको राज्यमार देकर अभी आपकी शरणमें माता है।" * शुक बोले- हे राजन् ! तुझे रुचे वह कर। ।
शैलकने मंडूकको राजतिलक किया और सबसे क्षमा कगकर वह थावश्चापुत्रके निकट आकर मुनि होगया। मुनि होकर शैलक खुब ही ज्ञान ध्यानमें रत रहने लगे। संयमपूर्वक अपना जीवन बिताते हुये वह चहुंओर विहार करने लगे। कालान्तरमें शुक्राचार्य ने उन्हें पंथक आदि पाचसौ मुनियों का गुरु नियत किया।
शैलकाचार्य उन मयमका आचरण करने थे, रूखा सुखा बो कुछ मिलता वह भोजन करते और ज्ञानध्यानमें समय व्यतीत करते थे। अकसर वह भूखे पेट म्हते थे । इस प्रकारके आहारविहारसे शैलकऋषिका सुकुमार शरीर पित्तज्वरसे मूखने लगा। किन्तु उसके कारण उन्होंने अपने संयमाचरणमें जराभी असावधानी न की ! जा. अस्त वह स्वपरकल्याण करने में ग्त रहे ।
शैलकाचार्यको ज्वरग्रस्त कृषकाय देखकर मंडूक राजाने उनमे प्रार्थना की कि " हे भगवान् ! आप यहीं विश्राम लीजिये। मैं अपने योग्य वैद्यों द्वारा आपकी चिकित्सा कराऊंगा।"
मंडूकके इन बचनोंने शैलकके हृदय में मोह नगा दिया। उसने