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बिधु
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अवलंबित है। जबतक मनुष्य शरीरका दास रहता है - इन्द्रियों की गुलामी करता है. तबतक वह पापसे मुक्त नहीं होता; किन्तु जिस क्षण वह शरीरको विनाशशील और उसके सुखको विषतुल्य समझता है उसी क्षण से वह आत्मभावको प्राप्त होता है, पुण्य प्रकाश उसे मिल जाता है ! समझे राजन् ! पाप कितना ही गुरुतर क्यों न हो, अपने हृदयको शुद्ध बनाइये और देखिये, पाप कैसे दुम दबाकर भागता है !"
मधु - 'महाराज ! हम दोनोंके हृदय पापसे घृणा करते हैं ।'
Radissimagisane
आ - तो राजन् ! तुम्हारा उद्धार होना सुगम है। परस्त्रीको घरमें डाल देना अथवा परपुरुषके साथ रमण करना, यह इन्द्रियबासना की अंधदासता की निशानी है। मोहनीबकी महत् कृपाका यह परिणाम है कि पुरुष स्त्री एक दूसरेको रमण करनेके लिये व्याकुल होजाते हैं। इस आकुलताको सीमामें रखकर विषयभोगोंको भोगने का विधान संसारी जीवोंने अपनी सुविधाके लिये बना लिया है। इसी सीमाका नाम विवाह है और इस सीमाका उल्लंघन करना विषयवासनाके तमतम उद्वेगका सबूत है। किन्तु हैं सब ही विषयवासना के गुलाम; कोई कम, कोई ज्यादा ! यदि विषयवासनाका कम शिकार बना हुआ मनुष्य धर्मकी आराधना करके पाप मोचन कर सका है तो उसमें अधिक सना हुआ मनुष्य क्यों नहीं ?
मधु-' नाथ ! लोग कहते हैं कि इससे विवाह मर्यादा नष्ट होजायगी !"
आ० - 'पापभीरु ! व्यभिचारसे हाथ धोलेनेवाले मनुष्यको धर्माराधना करने देनेसे विवाह मर्यादा कैसे नष्ट होगी ? संसारमे गती