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पतितोद्धारक जनधर्म ।
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तूफान मेल जैसे खड़ी मालगाड़ीसे टकराता है, वैसे ही चिलाती पुत्र बेतहाशा भागता हुआ एक ध्यानमें बैठे हुए चारण मुनिसे जा टकराया ! मुनिका ध्यान भङ्ग हुआ। उन्होंने चिलाती पुत्रका बीभत्सरूप देखा। अनायास उनके मुखसे निकल पड़ा'मरे ! यह क्या अधर्म !'
चिलाती पुत्र आवेशमें था। मुनिके उपरोक्त शब्द सुनते ही वह बोला-'तो धर्म क्या है ?
जिज्ञासाका भाव होता तो मुनिवर शायद उसे धर्मका विस्तृत रूप सुझाते; परन्तु चिलाती पुत्र तो आपेमें नहीं था। मुनिवर 'उपशम, संवर, विवेक' शब्दोंका उच्चारण करते हुए अन्तर्धान होगये ।
मुनिको इस तरह आकाशमे विलीयमान होते देखकर चिलाती पुत्र बचभेमें पड़ गया। उसे सोचने-विचारनेका तनिक अवकाश मिला। उसने दुहराया-'उपशम, संवर, विवेक यह क्या ? धर्म यही है क्या ? पर इनका मतलब ?' उसकी समझमें कुछ भी न आया, पर वह उन तीनों शब्दोंको रटने लगा। रटते-रटने उसका मन
और भी शान्त हुआ। उसने सोचा 'विवेक' तो उसने सुना है। महात्माओंको लोग विवेकी कहते है-महात्मा अच्छा बुरा चीनते हैं, तो क्या विवेकके अर्थ मला-बुरा चीनना है ? इस विचारके साथ ही उसने अपने हाथमें सुखमाका सिर देखा। उसे देखते ही वह सिहर उठा, बोला-'आह ! यह कितना बीमत्स दिखता है। सुखमाका रूप अब कहा गया ? विवेकने उसकी बुद्धिको सतेज