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मुनि कार्तिक ।
asianarmadandanangiari
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एक स्थान कड़का डपटकर बाळा-चुप रह न ।'
इसपर एक अन्यने पहलेकी हिमायत लेकर कहा कि " चुप क्यों रहे? क्या इनके नाना नहीं है सो बह न कहे !" स्थाने लड़के को भी ताव आ गया- 'उसने कहा कि' होने तो काहेको मना करता।"
दूसरेने बीचमें ही कहा- ' तो क्या रहे नहीं ?" स्यानेने एक धौल जमाते हुए कहा - ' इनके नाना जममे नहीं है । इनके और इनकी माके बाप एक है ।'
यह सुनते ही लड़के खिलखिला पड़े । कुंबरने गेंद व वकर एक पीठमें जड़दी । खेल शुरू होगया, लड़के उसमें मग्न होगये । किन्तु कुमार अपनेको सम्हाल न सके । वह चुपचाप महलोंको चले गये । साथियों द्वारा हुआ अपमान उन्हें चाट गया ।
( ३ )
रानीको कार्तिकेय बड़ा प्यारा था वह अपने लालको एक क्षणक लिये अपने नेत्रोंसे ओझल नहीं होने देती थी। उस दिन शामको जब बहुत देर होगई औ कुमार कार्निश्य नहीं आये तो वह एकदम घबडा उठी । दास दासिंग चारों ओर उनको ढूंढने लगीं, परन्तु कुमार कहीं न मिळे । लड़कों से पूछा- उन्होंने उत्तर दिया कि वह मुद्दतके महलों में चले गये ह ।'
लड़कों का उत्तर सुनकर एक दासी को भी याद आगया कि 'हा, उस ओरको जाते हुये मैंन कुंवरजी को देखा तो था ।'
रानी एकदम उस ओरको दौड़ गई। उस छोरपर एक कमरा था । रानीने उसे थपथपाया, पर उत्तर न मिला । धक्का देकर देखा