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HuutuuuNOU.BHAIR.
HAMARRIAL.
है, वह पर्ममार्थपर गई है, उनका कल्याण अवश्यम्भावी है। तु धर्मवत्सल है-तेरे हृदयमें अनुकम्पा और आस्तिक-भाव है। उनके दुःखको तू कैसे देखे ? और उनके पुण्यकर्म पर तू क्यों न प्रसन्न हो ??
भक्तने मस्तक नमाकर कहा-' नाथ ! माप सच करने हैं। जिसे धर्मसे प्रेम होगा उमे धर्मात्मासे भी प्रेम होगा, क्योंकि धर्मका आश्रय धर्मात्मामें है।
निम्र०- ठीक समझे हो, वत्म ! धर्मात्मा रूप-कुरूप जातिपाति-ऊँचनीच-कुछ नहीं देखता, वह गुणोंको देखता है । जानते हो हीरा और सोना मैलमे भरे ढेलों से निकलते हैं । तन मलीन और कृष्णान होते हुये भी मनुष्य धर्मात्मा होते है । ऐसे धर्मात्माओंको देख कर ग्लानि नहीं करना चाहिये । सुनो एक दफा इसी देशमें एक सोमशर्मा नामका ब्राह्मण रहता था। उसकी स्त्रीका नाम लक्ष्मीमती था । उन दोनोंको अपने शरीर-सौन्दर्य और उच्च जातिका बड़ा अभिमान था। ये अपने सामने किसीको गिनते नहीं थे। एक दिन एक महान दिगम्बर जैन तपस्वी लक्ष्मीमतीके द्वारसे निकले ! रूप और कुलके नशेमें मस्त बनी लक्ष्मीमतीने उन तपोधनको नंगा और बेला कुबैका देखकर बहुत उल्टी-सीधी सुनाई और मुंहसे पान उमाल लेकर उनके फेंक मासा ! वह सच्चे साधु थे, शत्रु और मित्रमें
के समभाव थे। कुमबाप कह बनको चले गये। लक्ष्मीमतीके हा-हुमाने आरामकी सांस ली। पर जानले हो, वह रूप कुलो प्रोमोडी श्री गौर फरमाया नहीं कर साहितर