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पतिः ।
अर्माताका मीठा फल उन्हें स्वर्णने ले गया है। सार्गक्री विभूति देखकर उनके बीन फूले अंग न समाये । दीर्घकाल तक उन्होंने स्वर्ग सुख भोगे । अन्तमें वे तीनों मगनदेश के गौरवग्राम में एक आरण के पुत्र हुये, वे बडे विद्वान थे । बहुओर उनकी कीर्ति विस्तृत थी । अन्ततः भगवान महावीर के वे तीनों माई प्रमुख शिष्य हुये और सिद्ध परमात्मा बने ! आज वे जगत्पूज्य हैं । शूद्रा जन्मसे विनयगुण द्वारा आत्मोत्कर्ष करके वे लोकबन्ध हुये । धन्य है वे और धन्य है जिनधर्म, जिसने घृणायोभ्य शूद्राओंको ऐसा महान पद प्रदान किया ।