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८६] पतितोदारक जैनधर्म। दानशील था। किंतु वह था हीन जातिका । दूसरे क्षत्री राजा उसे नीची दृष्टि से देखते थे। गजा बन जानेपर भी उसकी जातिगत हीनताको वे लोग नहीं भूले थे। कुल और जातिके घमंडका यह दुष्परिणाम था।
भगदत्तने मुंडिकाके सौंदर्यकी बात सुनी। उसने जितारिसे उसे मागा । जितारिने कहला भेजा कि 'जब अच्छे २ राजकुमारोंके साथ तो मुंडिकाने ब्याह किया नहीं तो तुझ नीचके–ओछी जातिके पुरुष के साथ उसका ब्याह कैसे होसक्ता है ? खबरदार, अब मुंडिकाका नाम मुंह पर मा लाना।'
भगवत्तने फिर दुन भेजकर मितारिसे निवेदन किया कि " वस्तुतः मनुष्यमें गुण होना चाहिये । जाति कोई भी हो, उससे कुछ काम नहीं । मुंडिकाका ब्याह मेरे साथ कर दो इसीमें तुम्हारी
जितारि मगदत्तके इस संदेशको सुनकर आगबबूला होगया । उसने दुतसे कहा कि " जाओ, भमदत्तसे कह दो कि राजा जितारि उसकी मनोकामना युद्धमें पूरी करेंगे।"
जितारिका यह, उत्तर पाते ही भगवत्तने युद्ध के लिये तैयारियां प्रारम्भ कर दी। उसके मंत्रियोंने उसे बहुत कुछ समझाया और बतलाया कि मैत्री और सम्बन्ध बसवर वालोंका ही शोमता है, राजाको हठ नहीं करना चाहिये ! किन्तु भगदत्तको उनके यह बचन रुचे नहीं। उसने कहा-" जितारिको अपने क्षत्रीपने-उच्च
आतिका घमंड है। इस घमंडको यदि मैं चूर-चूर न करतो लोक मुझे गुणी कैसे जानेगा और कैसे आदर करेगा ? लोकमें गुणवान होकर जीना ही सार्थक है। क्या तुमने यह नीतिका वाक्य नहीं सुना: