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पतितोद्धारक जैनधर्म ।
(२) सोमदत्तने हजारों-लाखों पौधोंको लगाया, बढ़ाया और सेवारा था। उसके हाथके लगे हुए सैकडों पेंड अपने सौन्दर्यसे लोगोंका मन मोहते थे; परन्तु यंत्र-विद्यामें वह अपनेकी कुशल सिद्ध न कर सका । कई दिन बीत गये परन्तु लाख सिर धुनने पर भी वह विमानका ढांचा भी न डाल सका । अपनी इस असमर्थता पर बेचारा हैरान था तो भी वह हताश न हुआ।
उस दिन सोमदत्त विमान-विद्या साध रहा था। राजगृहका नामी चोर अंजन उघरमे आ निकला। उसने सोमदत्तसे मारा वृत्तांत पूछा और उसकी कठिनाई जानकर उसने कहा-" भाई, घबड़ाओ मत, मुझे जरा यह विद्या बताओ। मैं इसे अभी साधे देता हूं।
सोमदत्तने कहा- भाई, मैं तुम्हें इस विद्याकी विधि एक शर्त पर बता सकता हूं और वह यह कि तुम मुझे विमानमें बैठा कर सारे तीर्थोकी यात्रा करा दो।'
अंजन बोला- अरे, इसके कहनेकी क्या जरूरत थी। विमान बन जाय तो एकबार क्या अनेकबार आपको तीर्थयात्रा करा दूंगा।
सोमदत्त यह सुनकर प्रसन्न हुआ और उसने चोरको विद्या साधने की विधि बतला दी । चोर निशक और दृढ पुरुषार्थी था । यह विमान बनानेमें बेसुध हो जुट गया और उसने उसे बना भी लिया; किन्तु उसमें बैठकर आकाशमें उड़ना भी कोई सरल काम