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दिखाकर ही रहता है। उश्चताके घमंडने उस बयं नीचा बना दिया।
किंतु पूर्वभवमें उसने तप भी तपा था, वह अकारथ कैसे जाता ? उसने अपना अमर दिखाया। पुण्योदयसे उसी ग्राममें धनदत्त नामका एक संठ रहता था। उसकी सीके उसी समय एक पुत्री हुई थी । सेटने उस पुत्रीको उपरोक्त हरिमन पुत्रसे बदल लिया और उसका नाम मेतार्य रख दिया। सारी दुनिया मेतार्य को मेट धनदत्तका पुत्र समझती थी।
श्रेणिकने अनी एक राजकुमारी का विवाह मेतार्यमे किया था। उस विवाहका बड़ा भारी उत्सव ग गृहमें हुआ था. एक दिन शामको मंठ धनदत्ता घर के सामने नाचरंग होरहा था लोग देखने आरहे थे । मेतार्य अली मा -पित भी देखन चले आए।
मेनार्य की जिन माताने ब अपने पुत्रका ऐसा महान सौभ भ्य और श्वर्य देव तो वह फूले अंग न समाई। माताका नह उसके उमड़ पड़ा। उसकी 3 तीमे दुध भर . या औ. वह छलछल करके बाहर निकल पडा । मातृस्नेहमे वह ५गली होगई । मेतार्यने भी लोगों के साथ यह सब कुछ देखा । उसे बडा आश्चर्य हुआ। माकी ममता ही ऐसी होमकती है, प.तु यह कौन कहता कि भेतार्यको यथार्थ मा दही हरिजन है ? मेत.र्य असमंजस में पड़ गया।
भाग्यवशात् त्रिकालदर्शी भगवान महावीर विहार करते हुये मेनायके नगरकी ओर आ पहुंचे। मत र्यने भी भगवानका शुमागमन सुना। वह उनकी वन्दना कर के लिये गया, और उन