________________
को इसपर उस भाको बड़ी हानि हुई और बह कहने लगा कि देवता भी कैसे होगए हैं कि एक पुलिन्द-मीचकी पुषांजलिसे तो प्रसन होगए और मुझ कुलीन ब्रामण भक्त के कीमती धार मान भी दिया। खैर, कल मैं भी फूलपती ही लाऊंगा।"
हसरे दिन वह भक्त शिवजीको फूलपत्ती चढ़ाने आया । पस्तु देला कि शिवजीकी एक आंख नहीं है। बटसे वह बड़बड़ाया । 'यह कलकी दुश्भेष्टाको दुष्परिणाम है। नीच पुलिन्दसे मुंह चलाना
कहीं देवताओं का काम है । खैर, एक स्त्र तो बची। और उसने ..अपनी मनोकांक्षा प्रगट करके फूलगती चढ़ादी। शिवनी अब भी रससे मस नहीं हुए । भक्त निगश होकर एक ओर जा बैठा । इतनेमें नीच पुनिन्द आया। उसने भी शिवनीकी एक आंख देखी।
बटसे उसने तीर लिया और अपनी आंख निकालकर उनको लगा -बी ! मकिकी हद होगई। शिवजीने प्रसन्न होकर उस पुलिसको गले लगा लिया और उस कुलीन भक्तको नो नाममात्रका भक्त या खुब झिड़का। बस भाई, समझो, देवता भी गुणों के प्रेमी है। पर जातिपांति नहीं देखते। सचमुच हरको मजे सो हरका होय, मह बकि सोलह भाने सप है।"
बे-सब लोग अपने धैर्य खो बैठे थे, एक चाण्डाल उनके पास माना अद्रव मनाये, यह वे भला कबतक बरदाश्त परते.
हरिकेशकी नवीतुली बातोंका कायल उनका दिल भले ही हुमाहो, अपरन्तु मस्तकाव भी नहीं नमा था। उसमर मानके पहारकाश जाकर बठे और कमको सहरिकको