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पतितोद्धारक जेनर्म। महीनका उपवास उनका पूरा हुआ था. वह पारणाके लिए नगरकी भोर चले। रास्ते जाते वह भद्राके यज्ञमण्डपके पास जानिकले। बामणोंने देखा कि वह चाण्डाल है, अछुन है। वे क्रोधके मारे लाल पीले होगए और बोले "कम्बख्त ! धर्मकर्मका नाश करते तुझे बरा भय नहीं है । चल हट यहांसे, नहीं तो तेरी खैर नहीं है।"
महात्मा हरिवेशपर इन कटुवचनों का कुछ भी असर न हुमा। बह तो अपने बैरीका भी भला चाहते थे। उन ब्राह्मणों को सत्यका मर्म सुझाना उन्हें उचित प्रतीत हुआ । आखिर निरपराध जीवोंका वध क्यों हो ? क्यों मनुष्य भ्रान्तिमें पड़कर अधर्मका संचय करें। जैन मुनि अज्ञान अंधकारको मेंटना अपना परम कर्तव्य समझते है। म० हरिकेशने अपना मौन भन्न कर दिया। वह बोले-" विप्रो' जातिका घमंड व्यर्थ है और प्राणियों की हिंसा कभी धर्म हो नहीं सका, यह निश्चय जानो।"
विप्रोंकी कोवामिमें इन वचनोंने घीका काम किया। ये गालियां मुनाते हुये बोले- 'चल-चल, तू जातिका चाण्डाल क्या जाने ब्रह्मकी बातें ! ब्रमको ब्राह्मण ही जानते हैं।" ।
म० हरिवेश अहिंसक सत्याग्रही थे, उन्होंने गालियोंकी कुछ भी परवा न की, बल्कि वह कहने लगे कि-"भाई ! ठीक है, परन्तु बामणों के घर जन्म लेनेसे कोई ब्रह्मको नहीं जान जाता। आन काखों ब्रामण मिलेंगे जो आत्मज्ञानकी · मोनम' भी नहीं जानते। सचमुच गुणोंसे मनुष्य ब्राह्मण और देवता बनता है। पूर्ण अहिंसक बमचारी ही सबा ब्रामण होता है।...