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परक: जैनधर्म ।
FEBRU
पतितोद्धारक
सपने बगे । बगीचेमें एक यक्षमंदिर था । यक्षने हरिकेशको देखा और उनके उम्र तपको देखकर वह उनका भक्त होगया ।
उसी समय उस नगरके राजाकी पुत्री भद्रा अपनी सखियों सहित वायुसेवन के लिये वहा आ निकली। मद्राने तो नहीं, परन्तु उसकी सखियोंने हरिवेशको ध्यान में मम बैठा देखा । वे सब उनके पीछे लग गई, तरहर के कामभाव दर्शाकर वह उन्हें सताने बर्गीीं । वे एक दूसरे से हरिकेशको उनका पति बतातीं और चुहल करती थीं। भद्राने भी यह देखा । उसने उन्हें शिड़का और कहा कि "कहीं ऐसा कुरूपी किसीका पति होगा ?"
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हरिकेशने न भद्रा के वचन सुने और न सखियोंकी करनीपर ध्यान दिया । वह अपने ध्यान में निश्चल रहे । सचमुच वह जिते द्रिय थे। स्त्रियोंकी कामुकता उनका कुछ भी न बिगाड़ सकी महाभट कामको उन्होंने चारों खाने चित्त पछाड़ मारा था। धन्य वे वह महानुभाव ! चाण्डाल के घर जन्म लेकर भी वह पूर्ण ब्रह्मचारी हुये।
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किन्तु महात्मा हरिकेाके भक्त यक्षसे स्त्रियोंकी उपरोक्तू क्रूरतूत सहन नहीं हुईं। उसने मद्राको कुरूपा बना दिया । सह बेचारी बड़ी बगड़ाई पर आखिर करती क्या होना था सो होगया हां, हरिवेशका माहात्म्य उसके दिलपर असर कर गया ।
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राजपुरोहित (ब्राह्मण) के साथ भद्रा व्याह दी गई। वर हरिवेश उग्रोम तप तपने बगे, जो भी सुनता उनके तपश्चरणकी सुतकंठसे प्रशंसा करता ।
राजकुमारी भद्रा और उसका प्रति राजपुरोहित नैट्रिक