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अन्तरको शुद्ध बनाओ। अहिंसा, सत्य, ब्रह्मचर्य मादि सातोंक पालन जो कोई करता है वही उप है, देवता है ब्राह्मण है। इन अतों का पालन करनेसे हृदय इतना पवित्र होता है कि सके देवके दर्शन वहीं होते हैं !"
हरिकेशको अब कुछ होश आया वह भी मनुष्य है, उसे भी धर्म पालना चाहिये । उमने पूछा- "तो नाथ ! क्या मैं धर्म पास सक्का ?"
मुनिने उत्तर दिया-"क्यों नहीं वत्स ! जीवोंको मत मारो, हमसे बने उतनी उनकी सेवा करो; झूठ कभी मत बोलो, हमेशा हितमित वचन बोलो, चोरी मत करो, पराई वस्तु भूलकर भी न लो, पूरे ब्रह्मचारी बनो, जगतकी स्त्रियोंको मां बहन समझो और पके संतोषी रहो, एक धेलेकी भी आकांक्षा न करो ! बोलो, इन बातों को करनेसे तुम्हें कौन रोक सकता है ? कोई नहीं, यही धर्म-पालन है !"
मुनिमहाराज के इस धर्मोग्देशका प्रभाव हरिकेशपर खूब हो पड़ा। उसने मैन धर्मकी दीक्षा लेली और वह उन मुनिके पास ह. कर ज्ञान-ध्यानका अभ्यास करने लगा और खूब ही उसने तप तपा। जब बह हरिया चाण्डाल नहीं था, उसे लोग महात्मा हरिकेश कहते थे। महात्मा हरिवेश रूपमें उसकी प्रसिद्धि भी चहुंमोर होगई थी।
महात्मा हरिकेश विहार करते हुये एक दिन तिंदुक नानके -रूमीचे मा विराजमान हुये। मौर वहांवर भरकर उस