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अमर शहीद चाण्डाल चट।
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पड़ा । वे भी धर्मका महत्व जान गये । पशु जीवन व्यतीत करनेसे उन्हें भी घृणा हो गई । धन्य है जैन मुनि जिन्होंने चाण्डालोंको भी सन्मार्गमें लगाया।
“ सुनते हैं रंभाका रूप अद्वितीय है। पर यह तो लोग कहते हैं। किसीने आज तक रंभाको देखा भी है ? बाहरी दुनियां! खूब बेपरकी उड़ाया करती है। मेरी रंभाके सौन्दर्यको वह देखे ! कैसा सुन्दर है उसका मुखड़ा । बादलोंमें जैसे पूर्णमासीका चंद्रमा चमकता है, ठीक वैसी ही प्रभा मेरी प्रियतमाके मुख में देखनेको मिलती है । लोग गाते हैं बिन बादल बिजली कहां चमकी !' मैं कहता हूं उनसे, वह इसका उत्तर पानेके लिये मेरी रंमाको देखें । उसके उन्नत भाल पर सोनेकी बिन्दी गजब ढाती है । भौर हां, उसकी नाक तो जरा देखो ! कैसी नुकीली है ! भौहें कमानकी तरह सीधी कानों तक तनी चली गई हैं। और उसकी चितवन सचमुच बिजलीका काम करती है । उसका हंसना मुझपर फूल बरसा देता है, मेरा दिल उसको देखते ही बाग-बाग हो जाता है।
किन आज कई दिनसे वह उदास है। उसके कुमलाये हुये मुखडेको देखते ही मुझ पर वज्रपात हुआ। मैं भूल गया अपने तन-मनको। बड़ी अनुनय-विनय करने पर कहीं उसने अपने मनकी बात कही। बड़ी लजीली है वह। लेकिन उसकी बात सुनकर में उलझनमें आ गिरा ई। राजाके यहांका एक सिपाही-स रुपल्लीका एक नौकर, भला कैसे राजा-महाराजाओंकी रीस करे.! उनके चार प्रवाह बहता है-चाहे कुछ खाये-पीय, पहने-ओहैं।