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बाब माली का।......! कम हैं कमाय मन्द है, वह सतोषी है और आत्मरूपके निकट है। इच्छा-पिशाचीका कोई एकदम दलन नहीं कर सक्ता । सस्कारों के प्रभावको कोई एकदम नहीं मेंट सका । कम-कम का प्रमी हो संस्कारोंको छोडता और अच्छे सरकारों को ग्रहण करता है। श्रेणिका क्या ममझते हो ? मैं जीवन्मुक्त परमात्मा इस शरीरको पाते ही झे गया हमही ! एक समय था नब मेरा आत्मा एक ऐसे मनुष्य शरीरमें था जो शिकार खेलने और मास खाने में आनन्द मानता था। आह ' कितनी विषमता थी वह । 'जीवोंका मारना अधर्म है, यह पाठ मैंने अपने उस जावनस पढ़ना आरम्भ किया था। मालूम है, युधिष्ठिस्न सत्यका स्वरूप समझनेक लिय वर्षों उद्यम किया था, तब वह उसको ठीकर समझ पाया था। उसके भाइयोंने बड़ी जल्दी ही कह दिया था कि हमन सत्यको समझ लिया। किन्तु उनके जीवन बताते हैं कि वस्तुत किमने पर्वका रूप समझा था । अदु समझ श्रेणिक धर्म किसतरह दीन मनुष्यको जगत्पुज्य बनाता है।"
नतमस्तक होकर श्रेणिकने कहा-“ प्रभो । खूब समझा। नाथ । आप अहिसाक अवतार है। प्राणीमात्रके लिये आप शरण है। यह नृशस पशु भी तो आपकी निकटतामें अपनी करता खोबैठे हैं। निस्सन्देह भाप पतितोद्धारक है।"
प्रभू महाबीरने श्रेणिकके भक्ति भावेशको बीचमें ही राककर कहा-" श्रेणिक ! अभी और सुनो। भूली भटकी दुनिया आज चाण्डालों, शद्रों और स्त्रियोंको धर्मारापनासे वंचित रखनेमें गर्व करती है। इनको धर्म सस्कारसे सस्कारित करने-उन्हें भामस्या