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अमर शहीद चाण्डाल चट। हमने यही सुना है कि चाण्डाल शूद्रोंसे भी गये बीते होते हैं। उनकी छाया भी अपने पर नहीं पड़ने देना चाहिये ।'
साधु०- द्विजपुत्र ! तुमने ठीक सुना है; किन्तु इसका मर्थ यह नहीं है कि चाण्डालों के साथ करताका व्यवहार किया जाय । जानते हो कि उनकी संगति क्यों नहीं करना चाहिये ? '
द्विज --- महाराज ! चाण्डाल महान् हत्यारे होने हैं। हत्यारोंकी संगति अच्छी नहीं होती।'
साधु- ठीक है। पर सोचो तो। यदि कोई ब्राह्मण, क्षत्रिय या वैश्य हत्यारा है तो क्या तुम उमे नहीं छूते ? उससे दुनिया. दारीका व्यवहार नहीं रखने ? '
द्विन०-' महाराज ! वह हत्याग, चाण्डाल नहीं है, इसलिये वह अछूत नहीं है। हम-सब उसके साथ उठने बैठने खाने-पीते है।'
साधु महारान मुस्कगते हुये बोले कि । मोचो जरा, जब हत्या करनेके कारण चाण्डाल अछूत है तर वैमा ही हिला कर्म करते हुये ब्राह्मण-क्षत्रियादि क्यों नहीं - क्या हिसा जनित पापके कारण वे दुर्गतिको नहीं जायगे?'
द्विज हिंसा करना पाप है और पाका परिणाम दुर्गति है महाराज !'
साधु०-' वत्स ! तो फिर जानिका अभिमान क्यों करते हो? मंसारमें कोई वस्तु नित्य नहीं है। जानि-कुल भी संसारकी चीज है। आत्मामें न नाति है न कुल है, और न वर्ण है। वह एक विशुद्ध अद्वितीय द्रव्य है। धर्मका सम्बन्ध आत्मामे है और आत्मा प्रत्येक पाणीमें मौजूद है । तब भला कहो, धर्म वामण-चाण्डालका भेद