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अमर शहीद चाण्डाल चण्ड ।
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पुण्डरीकिणी नगर्गके बाहर एक छोटासा लाखका घर बनाया गया था। राजा वसुपालन शाही जल्लादको प्राणदण्डका मजा चखानेके लिये उसे बनवाया था । राजाके लिये उसकी आज्ञाका भर होना, महान् असम अपमान है। राजसत्ताका आधार ही राजाकी आज्ञा है । यदि कहीं उसका उल्लघन होने लगे तो राजा न कहींका होरहे। इसीलिये राजद्रोहीको प्राणदण्ड देना राजनीतिमें विधेय है। राज्यके इस नियम के सम्मुख धर्मनीति पङ्ग हो जाती है । राजा न्याय भन्याय पीछे देखता है; पहले तो वह अपनी आज्ञाकी पूर्ति चाहता है। गजा वसुगाल इस नियमका अपवाद कैसे होता ? उसका ही. जल्लाद उनकी आज्ञाका उलंघन करे, इससे अधिक गुरुतर अप. राध और क्या हो सक्ता है ? चण्डने अहिंसावत ग्रहण किया अवश्य था; किन्तु इसका अर्थ यह नहीं है कि वह राज्य व्यबस्थामें अडंगा डाले । उसको प्राणदण्ड मिलना चाहिये । सचमुच अपने इस अदुत तर्कके बल पर राजा वसुपालने धर्मात्मा चण्डको प्राणदण्ड दे डाला था । चण्ड था तो चाण्डाल ही, परन्तु उसके भीतर का देवता जागृत होगया था। उसने अपनी पतिज्ञाके सामने अपने शरीरकी कुछ भी परवा नहीं की ! अपने प्राणों को देकर उसने व्रतरक्षाका मूल्य चुकाया।
रामा बसुपालने लाखके घरमें चोर सिपाहीके साथ चण्डको जला मारनेका हुक्म दे डाला। जल्लाद और सिपाही-दोनों ही उसमें पन्दथे। पण्डको प्राण जानेका भय नहीं था, बल्कि ब्रत