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पतितोदारक जैनधर्मः। भाषागसमा, प्रपाशिल (I)प (टो) पतिस्ट (1) पितो निगंवानं बह (ता) यतने स (हा) म (1) तरे भगिनिये चितरे पुत्रेण सर्वेन च परिजनेन महत् पूजाये।"
अनुवाद-" अर्हत् वर्द्धमानको नमस्कार! श्रमणोंकी भाविका मारायगणिका लोणशोभिका (लवणशोभिका) की पुत्री नादाय (नन्दायाः ) गणिका वसुने अपनी माता, पुत्री, पुत्र और अपने सर्व कुटुम्ब सहित अर्हत्का एक मंदिर, एक आयाग सभा, ताल (और ) एक शिला निग्रंथ अर्हतोंके पवित्र स्थान पर बनवाये।"
उपरोक्त दोनों शिलालेखोंसे 'नटी' और 'वेश्याओं' का जैन धर्ममें गाढ़ श्रद्धान और भक्ति प्रगट होती है। वे एक भक्तवत्सल जैनीकी भांति जिन मंदिरादि बनवाती मिलती हैं । मथुरा जैन पुरातत्वकी दो जिन मूर्तियोंसे प्रकट है कि ईस्वी० पूर्व सन् ३ में एक रंगरेजकी स्त्रीने और सन् २६ ई० में गंधी व्यासकी स्त्री जिनदासीने बहत् भगवानकी मूर्तिया बनवाई थीं।
प्रवणबेलगोलके एक शिलालेखमें एक सुनारने समाधि मरण करनेका उल्लेख है।' वहींके एक अन्य शिलालेखमें आर्यिका श्रीमती
और उनकी शिष्यामानकव्वेका वर्णन है। शिलालेखमें दोनों नामोंके साथ 'गणित' (Ganti) शब्द आया; जिससे प्रो० एस० आर० शर्मा इन आर्यिकाओंको 'गाणिग' अर्थात् तेली जातिकी बताने हैं। विजयनगरमें एक तेलिनका बनवाया हुआ जिनमंदिर " गाणगित्ति
१-पीग्रेफिया इंडिका, ११३८४१२-जर्नल मार दीरॉयक ऐशियाटिक सोसायटी भा०९ पृ०१८४।३-मद्रास-मैसूरके प्राचीन जैन स्मारक ।