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४४] पक्तिोदारक जैनधर्म । पाल बड़ी द्विविधामें पड़ा था। आखिर उसे एक युक्ति सूझ गई। 'साप मरे और न लाठी टूटे' की बातको चरितार्थ करना उमे ठीक जंचा। क्योंकि न तो वह आत्मवञ्चना करके व्रतभर कर मक्ता था और न अपनेको खोकर कुटुम्बको अनाथ बना सकता था । यमपालके जीमें जी आया- उसने सन्तोषकी सांस ली ही थी कि बाहरसे आवाज आई-" यमपाल !"
आवाज सुनते ही यमपालने कानोंपर हाथ रख लिये । वह अपनी झोंपड़ीके पिछले कोनेमें जा छिपा । पर छिपनेके पहले अपनी पत्नीके कानमें न जाने क्या मंत्र फूंक गया। इतनेमें दरवाजेसे फिर आवाज माई । 'यमपाल ! ओरे, यमपाल !' यमपालकी स्त्रीने देखा कि राजाके सिपाही खड़े है । उसने धीरसे कहा- वे आज बाहिर गाव गये हैं। ____ यह सुनकर सिपाही बोला- तुम लोग हो ही अभागे ! जन्मभर आदमियोंकी हत्या करते वीता, फिर भी रहे रोटियोंको मुहताज ! देखती है री ! आज यमपालको तू रोक रखती तो मालामाल होजाती-पान राजकुमार शूलीपर चढ़ाये जायगे और उनके लाखों रुपयेके मूल्यवाले वस्त्राभूषण हत्यारेको मिलेंगे । पर कम्बख्त ! तेरा आदमी जाने कहां जा मरा !' ___लाखों रुपयोंके मिलनेकी बातने चाण्डालीको विहल कर दिया, वह लोभको संवरण न कर सकी। चुपकेसे उसने झोंपड़ीकी ओर इशारा कर दिया । रामाके सिपाहियोंने यमपालको ढूंढ़ निकाला और वे उसे मारते-पीटते राजदरबार लेगये ।