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दमक । चैनसर्ग
अर्थात्-" दूसरों पर सत् अनुग्रह करना ही पर-स्थितिकरण
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| ब्रह अनुग्रह यही है कि जो अपने पदसे भ्रष्ट हो चुके हैं, बन्हें उसी पदमें फिर स्थापित कर देना।' इस विषय श्री सोमदेवाला विन उपदेश खास ध्यान देने योग्य है :नबैः संदिग्धनिर्वाहैर्विदध्याद् गणवर्धनम् । एकदोषको त्यान्यः सत्यः कथं नमः ॥ यहः समग्रकार्यार्थी नानापंचजनाश्रयः । अतः संबोध्य यो यत्र योग्यस्तं तत्र योजयेत् ॥ उपेक्षायां तु जावेत तत्वाद दूरतसे नरः । तवस्तस्य भवो दीर्घः समयोऽपि च हीयते ॥'
अर्थात्-" ऐसे ऐसे नवीन मनुष्योंसे अपनी जातिकी समूह वृद्धि करनी चाहिये जो संदिग्ध निर्वाह है-यानी जिनके विषयमे यह सन्देह है कि वे जातिके आचार विचारका यथेष्ठ पालन कर सकेंगे । ( और जब यह बात है तब ) किसी एक दोषके कारण कोई नर जातिसे बहिष्कार के योग्य कैसे होसकता है ? चूंकि जैन सिद्धान्ताचार विषयक धर्मकार्योका प्रयोजन नाना पंचजनोंके आश्रित
-उनके सहयोग से सिद्ध होता है । अत. समझाकर जो जिस कामके योग्य हो उसको उसमें लगाना चाहिये - जातिसे पृथक् न करना चाहिये । यदि किसी दोषके कारण एक व्यक्तिकी उपेक्षा को जाती है-उसे जातिमें रखनेकी परवाह न करके जातिसे पृथक किया जाता है, तो उस अपेक्षा से वह मनुष्य तत्वके बहुत दूर जापड़ता है। वलसे दूर उड़ने का संसार बढ़ जाता है और