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पतितारक मेमन लेते हैं वे उच्च गोत्री हैं और जो गर्हित अर्थात् दुःखी दरिद्री कुलमै उत्पन्न होते हैं, वे नीच गोत्री हैं। इस व्याख्या जानिके लिये कोई स्थान नहीं है ! क्योंकि लोक प्रचलित उंच नीचपन आचरणकी श्रेष्ठता और हीनतापर अवलंबित है। ब्राह्मण होकर भी कोई निध आचरणवाला, दीन दुःखी हो सकता है और एक शूद्र इसके प्रतिकूल प्रशस्त आचरणवाला सुखी देखनेको मिलता है। ___इमलिये ब्राह्मण होते हुए भी पहला नीच गोत्री और दूसरा शुद्र होनेपर भी उच्च गोत्री है। इसके अतिरिक्त यह बात भी नहीं है कि एक जीवके जन्मपर्यंत एक उच्च या नीच गोत्र कर्मका ही उदय रहे; बल्कि गोमट्टसार (कर्मकाण्ड ४२२१४२३) से स्पष्ट है कि गोत्र फर्ममें संक्रमण होता है अर्थात् नीच गोत्र कर्म उच्च गोत्र कर्मके रूपमें पलट जाता है। इसलिये गोत्रकर्मके कारण किसी जीवकोचाहे वह जातिसे कितना ही गर्हित क्यों न हो, धर्म धारण करनेमे वञ्चित नहीं किया जासकता । वर्तमानकालके प्रमिद्ध जैन पंडित और तत्वज्ञानी म्याद्वाद
वारिधि, वादिगजकेशरी स्व० श्री. पं० स्व०५० गोपालदासजीका गोपालदासनी बरैया भी उक्त प्रकार अभिमत । शूद्र और म्लेच्छों तकको धर्मका पालन
करनेके योग्य ठहराते है। देखिये, वह लिखते हैं कि 'ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य-इन तीनों वर्गों के वनस्पतिमोजी आर्य मुनिधर्म तथा मोक्षके अधिकारी है। म्लेच्छ और