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Imaan.
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पतिनधारक - [१९ ही जिनेन्द्रनै धर्मोपदेश दिया था। जातिगत कास्पनिक होनाविकताके कारण कोई भी मनुष्य धर्माराधना करनेसे वंचित नहीं ठहराया गया है। जिसप्रकार एक तृणभक्षी अहिंसक हाथी और एक मामिरमक्षी कर सिंह समानरूपमें धर्मपालन करते हुवे शाम मिलते हैं
और दोनों ही आत्मोन्नति करके सर्वज्ञ तीर्थकर होने हैं; वैसे ही मन ही प्रकारके मनुष्य-चाहे वे सदाचारी, उस, कुलीन हो अथवा दुराचारी, नीच, अकुलीन हों, धर्मका सेवन करकर अपना आत्मकल्याण कर सक्ते हैं ! अपनी चीजको भोगनेका अधिकार चिरमिथ्यात्वकी लम्बी अवधिके कारण छीना नहीं जासक्ता और न जाति मर्यादाकी कल्पना उसे कष्ट कर सकी है, क्योंकि श्वेताम्कराचार्य भी जातिको जन्मसे-मौलिक न मानकर कर्मानुसार कल्पित कहते हैं। उत्तराध्ययन सूत्र में कहा गया है:
'कम्मुणा बम्मणो होइ, कम्मुणा होइ खत्तिओ। बइसो कम्मुणा होइ, सुद्दो हवइ कम्मुणा ॥२५॥
अर्थात्-कर्मसे ब्राह्मण होता है, कर्मसे ही क्षत्री । वैश्य भी कर्मसे होता है और शूद्र भी कर्मसे । इसलिये जातिगत विशेषता कुछ नहीं है-विशेषता तो विशुद्धवृत्ति तपश्चरण आदिसे दृष्टि पड़ती
है। ('सक्खं खु दीसइ तवो विसेसो, न दीसह जाइविसेस कोई।'* उत्तराध्यन सूत्र । ) इसलिये जातिका मद नहीं करना चाहिये ।
१-भगवंचणं अद्धमागहीए भासाए धम्ममाइक्खा । सवियणं मद्धमागहीमासा भासिज्जमाणी तेसिं सव्वेति मारियमणारियाणं, दुप्पय, चउप्पय मियपसुपक्खिसरीसिवाणे मयप्पणोहिय सिवसुइदाय मासजाए परिणामह।
-समवायांग सूत्र।