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पद्मपुराण
एक सौ अठारहवाँ पर्व सुग्रीव आदि, लक्ष्मण का दाह संस्कार करने की प्रेरणा देते हैं परन्तु राम उनसे कुपित हो लक्ष्मण को लेकर अन्यत्र चले जाते हैं। राम, लक्ष्मण के शव को नहलाते हैं, भोजन कराने का प्रयत्न करते हैं और चन्दनादि के लेप से अलंकृत करते हैं। इसी दशा में दक्षिण के कुछ विरोधी राजा अयोध्या पर आक्रमण की सलाह कर बड़ी भारी सेना ले आ पहुँचते हैं परन्तु राम के पूर्व भव के स्नेही सेनापति कृतान्तवक्त्र और जटायु के जीव जो स्वर्ग में देव हुए थे आकर इस उपद्रव को नष्ट कर देते हैं। शत्रुकृत उपद्रव को दूर कर दोनों नाना उपायों से राम को सम्बोधित हैं जिससे राम छह माह के बाद लक्ष्मण के शव का दाह-संस्कार कर देते हैं।
३८२-३६१ एक सौ उन्नीसवाँ पर्व राम संसार से विरक्त हो शत्रुघ्न को राज्य देना चाहते हैं परन्तु वह लेने से इनकार कर देता है। तब पुत्र अनंगलवण को राज्य भार सौंपकर निर्ग्रन्थ दीक्षा धारण कर लेते हैं। उसी समय विभीषण आदि भी अपने अपने पुत्रों को राज्य दे दीक्षा धारण करते हैं।
३६२-३६६ एक सौ बीसवाँ पर्व महामुनि रामचन्द्र जी चर्या के लिए नगरी में आते हैं किन्तु नगरी में अद्भुत प्रकार का क्षोभ हो जाने से वे विना आहार किये ही वन को लौट जाते हैं।
३६७-४०० एक सौ इक्कीसवाँ पर्व मुनिराज राम पाँच दिन का उपवास लेकर यह नियम ले लेते हैं कि यदि वन में आहार मिलेगा तो ग्रहण करेंगे अन्यथा नहीं। राजा प्रतिनन्दी और रानी प्रभवा वन में ही उन्हें आहार देकर अपना गृहस्थ जीवन सफल करते हैं।
४०१-४०३ एक सौ बाईसवाँ पर्व राम तपश्चर्या में लीन हैं। सीता का जीव अच्युत स्वर्ग का प्रतीन्द्र जब अवधिज्ञान से यह जानता है कि ये इसी भव से मोक्ष जानेवाले हैं तब प्रीतिवश उन्हें विचलित करने का प्रयत्न करता है। परन्तु उसका सब प्रयत्न व्यर्थ हो जाता है। महामुनि राम क्षपकश्रेणी प्राप्त कर केवली हो जाते हैं।
४०४-४०६ एक सौ तेईसवाँ पर्व सीता का जीव प्रतीन्द्र नरक में जाकर लक्ष्मण के जीव को सम्बोधता है। धर्मोपदेश देता है। उसके दुःख से दुःखी होता है तथा उसे नरक से निकालने का प्रयत्न करता है परन्तु उसका सब प्रयत्न व्यर्थ जाता है।...नरक से निकलकर वह केवली राम की शरण में जाता है और उनसे दशरथ का जीव कहाँ उत्पन्न हुआ है ? भामण्डल का क्या हाल है ? लक्ष्मण तथा रावण आदि का आगे क्या हाल होगा ? यह सब पूछता है। केवली राम अपनी दिव्य ध्वनि के द्वारा उसका समाधान करते हैं। केवली राम निर्वाण प्राप्त करते हैं।...अन्त में ग्रन्थकर्ता रविषेणाचार्य अपनी प्रशस्ति लिखते हैं।
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