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Niyamasāra
नियमसार
धर्म, अधर्म और आकाश द्रव्य का लक्षण - The media of motion and rest, and the space -
गमणणिमित्तं धम्ममधम्मं ठिदि जीवपोग्गलाणं च । अवगहणं आयासं जीवादीसव्वदव्वाणं ॥३०॥ जो जीव और पुद्गलों के गमन का निमित्त है वह धर्म (द्रव्य) है, जो जीव और पुद्गलों की स्थिति (ठहरने) का निमित्त है वह अधर्म (द्रव्य) है तथा जो जीवादि समस्त द्रव्यों के अवगाहन का निमित्त है वह आकाश (द्रव्य) है। भावार्थ - छह द्रव्यों में सिर्फ जीव और पुद्गल द्रव्य में क्रिया है, शेष चार द्रव्य क्रिया रहित हैं। जिनमें क्रिया होती है उन्हीं में क्रिया का अभाव होने पर स्थिति का व्यवहार होता है। इस तरह जीव और पुद्गल इन दो द्रव्यों की क्रिया में जो अप्रेरक निमित्त है वह धर्म द्रव्य है तथा उन्हीं दो द्रव्यों की स्थिति में जो अप्रेरक निमित्त है वह अधर्म द्रव्य है। अवगाहन समस्त द्रव्यों का होता है इसलिये आकाश का लक्षण बतलाते हुए कहा गया है कि जो जीवादि समस्त द्रव्यों के अवगाहन (स्थान देने में) निमित्त है वह आकाश द्रव्य है।
The medium of motion (dharma dravya) is the instrumental cause that assists souls (jīva) and matter (pudgala) in their motion (gamana). The medium of rest (adharma dravya) is the instrumental cause that assists souls (jiva) and matter (pudgala) in their rest (sthiti). The space (ākāśa dravya) is the instrumental cause that provides accommodation (avagāhana) to all substances - souls (jiva), etc.
EXPLANATORY NOTE
That which takes an object from one place to another is ‘gati' – motion.
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