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CHAPTER-7
परमालोचनाधिकार THE SUPREME CONFESSION (INTROSPECTION)
निश्चय आलोचना का स्वरूप - The real confession (ālocanā) - णोकम्मकम्मरहियं विहावगुणपज्जएहिं वदिरित्तं । अप्पाणं जो झायदि समणस्सालोयणं होदि ॥१०७॥ जो नोकर्म (पाँच प्रकार के शरीर) और (आठ प्रकार के) कर्म से रहित तथा विभावगुण पर्यायों से व्यतिरिक्त (भिन्न, रहित) आत्मा को ध्याता है, उस श्रमण के आलोचना घटित होती है।
The ascetic (śramaņa, muni, sādhu) who meditates on the soul that is rid of nokarma (five kinds of bodies), (eight kinds of) karmas, and unnatural (vibhāva) modes (paryāya), is confession (ālocanā).
EXPLANATORY NOTE Acārya Kundakunda's Samayasāra: जं सुहमसुहमुदिण्णं संपडि य अणेयवित्थरविसेसं । तं दोसं जो चेददि सो खलु आलोयणं चेदा ॥१०-७८-३८५॥ वर्तमान काल में उदय में आये हुए (मूलोत्तर प्रकृति के रूप में) अनेक विस्तार वाले जो कर्म हैं, उस दोष को जो जीव (भेदरूप) अनुभव करता है, वह जीव वास्तव में आलोचना है।
The Self who realizes as evil the multitude of karmas, virtuous or wicked, which come to fruition in the present, is certainly the real confession.
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