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CHAPTE R - 12 शुद्धोपयोग अधिकार
THE PURE-COGNITION निश्चय और व्यवहार नय से केवली की व्याख्या - The Omniscient (kevali) - जाणदि पस्सदि सव्वं ववहारणएण केवली भगवं । केवलणाणी जाणदि पस्सदि णियमेण अप्पाणं ॥१५९॥
व्यवहार नय से केवली भगवान् सबको जानते और देखते हैं परन्तु निश्चय से केवलज्ञानी आत्मा को (स्वयं को) जानते और देखते हैं।
From the empirical (vyavahāra) point-of-view, the Omniscient (kevalī) knows and sees everything, but from the real, transcendental (niscaya) point-of-view, the Omniscient Lord (kevalajñānī) knows and sees the Self.
EXPLANATORY NOTE
Acārya Kundakunda's Pravacanasāra: पक्खीणघादिकम्मो अणंतवरवीरिओ अहियतेजो । जादो अदिदिओ सो णाणं सोक्खं च परिणमदि ॥१-१९॥
वह स्वयंभू भगवान् आत्मा अतीन्द्रिय - इन्द्रिय ज्ञान से परे - होता हुआ अपने
और पर के प्रकाशने (जानने) वाला ज्ञान तथा आकुलता रहित अपना सुख, इन दोनों स्वभावरूप परिणमता है। कैसा है भगवान्? सर्वथा नाश किये हैं चार घातिया कर्म जिसने अर्थात् जब तक घातिया कर्म सहित था तब तक क्षायोपशमिक मत्यादि ज्ञान तथा चक्षुरादि दर्शन सहित था। घातिया कर्मों के नाश होते ही अतीन्द्रिय हुआ। फिर कैसा है? मर्यादा रहित है उत्कृष्ट बल
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