Book Title: Niyam Sara
Author(s): Vijay K Jain
Publisher: Vikalp

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Page 412
________________ ॐ ह्रीं श्रीं कल्पतरु शान्तिनाथाय नमः। ॐ ह्रीं चारित्रचक्रवर्ती आचार्य श्री शान्तिसागर, वीरसागर, शिवसागर, धर्मसागर, अजितसागर, अभिनन्दनसागराय नमः। मपूज्य पारजी महाराज विद्वान् विजय कुमार जी प्रतिभा है अविवाद। आर्ष ग्रन्थ का जो करें इंग्लिश में अनुवाद // श्रुतप्रभावना को करो जगें ज्ञान निःशेष / अनेकान्त आचार्य का लो आशीष विशेष // द्रव्यानुयोग जिनागम का सार है, तत्त्वार्थ प्रकाशनार्थ दीपवत् है। द्रव्यश्रुत से भावश्रुत प्रकाशित होता है और भावश्रुत से भेदज्ञान होता है। ज्ञान मध्य दीपक है क्योंकि ज्ञानपूर्वक श्रद्धान, फिर ज्ञानसहित आचरण ही रत्नत्रय प्राप्ति का कारण है। श्रीजी की दिव्यध्वनि में अठारह महाभाषायें एवं सात सौ लघुभाषायें होती हैं। वर्तमान युग अंग्रेजी प्रधान है। धर्मानुरागी, श्रुतानुरागी, सदाचारी श्री विजय कुमार जी जैन ने जिनशासन की प्रभावना हेतु, अज्ञान के नाश हेतु तथा मोहमार्ग को छोड़कर आत्मा के शाश्वत सुख-शान्ति हेतु आर्ष ग्रन्थों का भाषानुवाद कर अक्षीण सातिशय पुण्यबंध किया है। उन्होंने समयसार, प्रवचनसार, रत्नकरण्डक-श्रावकाचार, स्वयम्भूस्तोत्र, द्रव्यसंग्रह, पुरुषार्थसिद्धयुपाय, तत्त्वार्थसूत्र, समाधितंत्रम्, इष्टोपदेश व आप्तमीमांसा जैसे अतुलनीय ग्रन्थों का अंग्रेजी अनुवाद कर, अधुना 'नियमसार' ग्रन्थराज का व्याख्या सहित अंग्रेजी अनुवाद कर विशेष सुकृत अर्जित किया है। श्रुताभ्यास भविष्य में आपको केवलज्ञान की प्राप्ति में कारणभूत हो। शुभाशीष। इत्यलम् मंगलं भूयात्। मार्च 2019, सम्मेद शिखरजी - आचार्य अनेकान्तसागर मुनि विकल्प Vikalp Printers

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