Book Title: Niyam Sara
Author(s): Vijay K Jain
Publisher: Vikalp
View full book text
________________
Niyamasāra
नियमसार
Name of the Scripture
कारिका/श्लोक/गाथा
क्रमांक
Page
Acārya Kundakunda's Pravacanasāra
--- जो हि सुदेण विजाणदि (१-३३) --- पक्खीणघादिकम्मो (१-१९) --- सुत्तं जिणोवदि8 (१-३४) --- अत्थो खलु दव्वमओ (२-१) --- अत्थित्तणिच्छिदस्स हि (२-६०)
णरणारयतिरियसुरा (२-६१) --- आदा कम्ममलिमसो (२-२९) --- दव्वट्ठिएण सव्वं दव्वं (२-२२) --- वण्णरसगंधफासा विजंते (२-४०) --- समओ दु अप्पदेसो (२-४६) --- लिंगेहिं जेहिं दव्वं (२-३८) --- दव्वं जीवमजीवं जीवो (२-३५) --- जदि सो सुहो व असुहो (१-४६) --- रत्तो बंधदि कम्मं मुच्चदि (२-८७) --- अत्थित्तणिच्छिदस्स हि (२-६०) --- णाणं अत्थवियप्पो कम्मं (२-३२) --- जीवो भवं भविस्सदि (२-२०) --- देहा वा दविणा वा (२-१०१) --- मरदु व जिवदु जीवो (३-१७) --- एक्कं खलु तं भत्तं (३-२९) --- वदसमिदिदियरोधो (३-८) --- एदे खलु मूलगुणा (३-९) --- चारित्तं खलु धम्मो (१-७) --- सुविदिदपदत्थसुत्तो (१-१४) --- ण जहदि जो दु ममत्तिं (२-९८) --- जो खविदमोहकलुसो (२-१०४) --- उदयगदा कम्मंसा (१-४३)
112
133
136
157
157
164
169
171
181
187
324

Page Navigation
1 ... 388 389 390 391 392 393 394 395 396 397 398 399 400 401 402 403 404 405 406 407 408 409 410 411 412