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परमसमाधि अधिकार
9 - THE SUPREME MEDITATION
समताभाव के बिना सब व्यर्थ है - Equanimity is all-important - किं काहदि वणवासो कायकिलेसो विचित्तउववासो । अज्झयणमोणपहुदी समदारहियस्स समणस्स ॥१२४॥
समताभाव से रहित श्रमण को वनवास, कायक्लेश, नाना प्रकार के उपवास, अध्ययन और मौन आदि क्या करेंगे? अर्थात् कुछ नहीं।
What shall the ascetic (śramaņa) profit from living in the forest, mortification of the body, fasting of various kinds, studying, and observing silence, if he is without equanimity (samatābhāva)?
EXPLANATORY NOTE Ācārya Pūjyapāda’s Samādhitańtram: यस्य सस्पन्दमाभाति निःस्पन्देन समं जगत् । अप्रज्ञमक्रियाभोगं स शमं याति नेतरः ॥१७॥
जिस ज्ञानी जीव को अनेक क्रियाओं और चेष्टाओं को करता हुआ शरीरादि रूप यह संसार निष्चेष्ट, काष्ठ-पाषणादि के समान चेतना-रहित जड़ और क्रिया और सुखादि अनुभवरूप भोग से रहित प्रतीत होने लगता है, वह जीव परम-वीतरागतामय उस शान्ति-सुख का अनुभव करता है जिसमें मन-वचन-काय का व्यापार तथा इन्द्रिय-द्वारों से विषय का भोग नहीं किया जाता है; उससे भिन्न जीव - दूसरा बहिरात्मा जीव - उस शान्ति-सुख का अनुभव नहीं करता है।
The knowledgeable man, when he starts perceiving this throbbing world as listless - inanimate, unmoving and
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