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निश्चयप्रत्याख्यानाधिकार
ज्ञानादि में आत्मा
The Self is in knowledge, etc.
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16 - THE REAL RENUNCIATION
आदा खु मज्झ णाणे आदा मे दंसणे चरित्ते य । आदा पच्चक्खाणे आदा मे संवरे जोगे ॥१००॥
निश्चय से मेरे ज्ञान में आत्मा है, मेरे दर्शन में और चारित्र में आत्मा है, मेरे प्रत्याख्यान में आत्मा है और मेरे संवर में तथा योग (शुद्धोपयोग) में आत्मा है।
भावार्थ - गुण - गुणी में अभेद कर आत्मा ही को ज्ञान, दर्शन, चारित्र, प्रत्याख्यान, संवर तथा शुद्धोपयोग रूप कहा है।
“The soul (ātmā ) is in my knowledge (jñāna), perception (darśana), and conduct (cāritra); it is in my renunciation (pratyākhyāna), stoppage-of-karmas (samvara), and purecognition (śuddhopayoga).”
EXPLANATORY NOTE
ācārya Kundakunda's Pravacanasāra:
एवं णाणप्पाणं दंसणभूदं अदिंदियमहत्थं । धुवमचलमणालंबं मण्णेऽहं अप्पगं सुद्धं ॥२- १००॥
भेदविज्ञानी मैं इस तरह आत्मा को मानता हूँ कि आत्मा परभावों से रहित निर्मल है, निश्चल एक रूप है, ज्ञान - स्वरूप है, दर्शनमयी है, अपने अतीन्द्रिय स्वभाव से सबका ज्ञाता महान् पदार्थ है, अपने स्वरूपकर निश्चल है, परद्रव्य के आलंबन (सहायता) से रहित स्वाधीन है। इस प्रकार शुद्ध, टंकोत्कीर्ण आत्मा को अविनाशी वस्तु मैं मानता हूँ ।
This way, I consider my soul (ātmā) to be pure (śuddha), eternal
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