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4 - THE EMPIRICAL RIGHT CONDUCT
व्यवहारचारित्राधिकार साधु परमेष्ठी का स्वरूप - The nature of the Ascetic (the Sadhu) - वावारविप्पमुक्का चउव्विहाराहणासयारत्ता । णिग्गंथा णिम्मोहा साहू दे एरिसा होंति ॥५॥
जो व्यापार से विमुक्त (सर्वथा रहित) हैं, चतुर्विध (दर्शन, ज्ञान, चारित्र
और तप) आराधना में सदा लीन रहते हैं, निर्ग्रन्थ (परिग्रह-रहित) हैं तथा निर्मोह हैं, ऐसे साधु होते हैं।
The Ascetics (Sādhu) are free from all (worldly) occupations, absorbed incessantly in four kinds - darśana, jñāna, caritra and tapa – of adoration, without possessions (nirgrantha), and rid of delusion (moha).
EXPLANATORY NOTE
Acārya Kundakunda's Pravacanasāra:
वदसमिदिदियरोधो लोचावस्सयमचेलमण्हाणं । खिदिसयणमदंतवणं ठिदिभोयणमेयभत्तं च ॥३-८॥
एदे खलु मूलगुणा समणाणं जिणवरेहिं पण्णत्ता । तेसु पमत्तो समणो छेदोवट्ठावगो होदि ॥३-९॥ (जुगलं)
पाप-योग क्रिया से रहित पञ्च महाव्रत, पाँच समिति और पाँच इन्द्रियों का निरोध (रोकना), केशों का लोंच, छह आवश्यक क्रियायें, दिगम्बर अवस्था, अंग प्रक्षालनादि क्रिया से रहित होना, भूमि-शयन, अदंतधावन अर्थात् दतौन नहीं करना, खड़े होकर भोजन करना और एक बार भोजन (आहार), ये (अट्ठाईस) मूलगुण मुनीश्वरों के सर्वज्ञ-वीतरागदेव ने निश्चयकर कहे हैं, इन मूलगुणों से ही यतिपदवी स्थिर रहती है। उन मूलगुणों में जो किसी समय
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