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Niyamasāra
नियमसार
निश्चयकाल के स्वरूप का कथन - The real (transcendental) substance of time - जीवादु पोग्गलदो णंतगुणा भावि संपदा समया । लोयायासे संति य परमट्ठो सो हवे कालो ॥३२॥ भावी अर्थात् भविष्यत् काल जीवों तथा पुद्गलों से अनन्तगुणा है। संप्रति अर्थात् वर्तमान काल 'समय' मात्र है। और जो लोकाकाश में कालाणु हैं वे परमार्थ से (अर्थात् निश्चय से) काल (द्रव्य) है।
The future time is infinite (ananta) times the number of souls (jīva) and the matter (pudgala). The present time is just the ‘samaya' – the shortest unit and mode (paryāya) that is the empirical (vyavahāra) time (kāla). The real (niscaya) time – the substance (dravya) of the time (kāla) - comprises time-atoms (kālāņu) inhabiting the entire universe-space (lokākāśa).
EXPLANATORY NOTE Ācārya Kundakunda’s Pravacanasāra: समओ दु अप्पदेसो पदेसमेत्तस्स दव्वजादस्स । वदिवददो सो वट्टदि पदेसमागासदव्वस्स ॥२-४६॥ और काल-द्रव्य प्रदेश से रहित है, अर्थात् प्रदेशमात्र है; वह कालाणु आकाश-द्रव्य के निर्विभाग क्षेत्ररूप प्रदेश में मंद गति से गमन करने वाला तथा एक प्रदेशरूप ऐसे पुद्गल जातिरूप परमाणु के निमित्त से समय-पर्याय की प्रगटता से प्रवर्तता है।
1- पाठान्तर - ‘चावि'; देखें 'गोम्मटसार (जीवकाण्ड)', गाथा 579 – “वर्तमान काल
का परिमाण एक समय है। भाविकाल सर्व जीवराशि और सर्व पुद्गलों से भी अनन्त गुणा है। इस प्रकार (अतीत काल सहित) व्यवहार काल तीन प्रकार का कहा।"
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