________________ भूमिका सूची भी ग्रन्थान्तमेंदी गयी है। इस प्रकार इस ग्रन्थको सर्वाङ्गमुन्दर एवं सरक बनाने का यथाशक्य प्रयन किया गया है। आशा एवं पूर्ण विश्वास है कि इससे सर्वसाधारण पाठकवृन्द को अवश्य काम एवं सरलता होगी। आभार प्रदर्शनसर्वप्रथम भगवान् विश्वनाथ एवं अन्य गुरुवर्षों के साथ इस ग्रन्पके हमारे अन्यतम गुरु स्व. म. म. श्री 6 देवीप्रसादनी शुझ कपिचक्रवती तथा स्व. म. म. श्री 6 माधव भाण्डारी महोदयके चरणकमलमें बडाजलि प्रणाम करता हुआ उनका भाभार मानता हूँ, जिनकी चरणानुकम्पासे मैं इस सर्वर महाकान्यकी 'मणिप्रभा' नामकी हिन्दी टीका लिखनेमें समर्थ हुआ, तथा म० म० पं. शिवदत्तसा, पं० बलदेवजी उपाध्याय एम० ए० और श्रेष्ठिवर्य कन्हैयालालनी पोदार महोदयोंका भी बहुत आमार मानता हूँ जिनके प्रस्तावना तथा इतिहास ग्रन्योंकी सहायता से मैंने इसको यह भूमिका लिखी है। राजकीय संस्कृत कालेन काशीके प्रधानाचार्य माननीय श्री पं० त्रिभुवनप्रसादजी उपाध्याय एम० ए० तथा प्रधानाध्यापक आचार्य श्री पं० बदरीनाथजी शल, एम०९० महोदयोंका तो मैं अतिशय भामारी हूँ जिन्होंने इस ग्रन्थका क्रमशः प्राकथन तथा सम्मति लिखनेकी कृपा की है। ___ अन्तमें हम इस ग्रन्धके प्रकाशक चौखम्बा संस्कृत सीरीन के प्रधानाध्यक्ष गोलोकवासी माननीय श्रीयुत हरिदास जी गुप्त के पुत्र बाबू जयकृष्णदासजी गुप्तको विशेष धन्यवाद देता हूँ, जिन्होंने भावातीत विलम्ब होने तथा अन्यके माकारके अत्यधिक बढ़ बानेपर भी अपने लाभकी ओर विशेष ध्यान न देकर इस ग्रन्धको सर्वसाधारणको मुलभ मूवमें देनेके विचारसे प्रकाशित कर संस्कृत वाजायकी सेवाका महान् भादर्श उपस्थित किया है। अन्यान्य भी मेरे जिन मित्रोंने मेरे बाहर रहनेसे प्रफसंशोधनादि कार्यद्वारा इसे पूर्ण करनेमें योग दिया है उनको भी मैं साभार भनेकशः धन्यवाद देता हूँ। अन्तिम निवेदनइस महाकाम्यके अनुवाद कार्यको गुरुतर भार मानते हुए सहदय विद्वानों एवं प्रिय छात्रोंसे भी मेरा विनत्र निवेदन है कि इस ग्रन्थको भी मेरे भनूदित अमरकोष, रघुवंश महाकाव्य तथा मनुस्मृति भादि अन्योंके समान हो अपनाकर मुझे पुनः अन्य ग्रन्थोंको लिखनेके लिए उत्सादित करनेकी कृपा करें। साथ ही मानव-मुलम दोषवश बदि कहीं त्रुटि इटिगोचर हो, उसे मुझे सूचित करनेकी कृपा करें, जिससे अग्रिम संस्करणमें उसको दूर कर दिया नावे / इति शम् / चाराणसी ) निशुपवियः महाशिवरात्रि सं० 2010) हरगोविन्द शास्त्री