________________ भूमिका राजाको आशासे नैषधचरितकी रचना की और उनके आदेशसे ही कश्मीर जाकर इस महाकाव्यको वहां सरस्वती देवीके हाथमें रखकर उसके अभिनन्दन करने पर वहाँके तात्कालिन राजा माधव देव से ग्रन्थका सरस्वत्यमिनन्दित होनेका राजमुद्राङ्कित लेख प्राप्त कर काशी लोटे और उक्त राजमुद्राङ्कित लेख राजा जयन्तचन्द्रको दिया तबसे यह महाकाव्य लोकप्रसिद्ध हुआ'। अब यहां पर यह सन्देह होता है कि श्रीहर्ष 22 सान्त इस महाकाव्यको लिखने के उपरान्त यदि कश्मीर गये तो 'कश्मीरमहिते..... ( 16 / 130) यह वचन मध्य में किस प्रकार आया ? अतएव शात होता है कि कश्मीरसे ग्रन्थकी प्रामा. णिकता सिद्ध होने के उपरान्त श्रीहर्षने सर्गके अन्त में 'श्रीहर्ष कविराजराजिमुकुटा....... सर्गो निसर्गाज्वलः॥ 1-1 श्लोक ग्रन्थमें जोड़ दिया है। वास्तविकता क्या है ? सम्भव है भावी इतिहासकार इसका अनुसन्धानकर जनताके समक्ष उपस्थित करेंगे। नैषधचरितकी टीकाएँम० म० पं० शिवदत्तशमा महोदयने नैषधचरितकी प्रस्तावनामें इसके निम्नलिखित 23 टीकाकारों के नाम लिखे हैं-१ आनन्दराजानक, 2 ईशानदेव, 3 उदयनाचार्य, 4 गोपीनाथ, 5 चाण्डू पण्डित, 6 चारित्रवर्धन, 7 जिनराज, 8 नरहरि (या-नरसिंह ), 9 नारायणमट्ट, 10 भगीरथ, 11 मरतमलिक ( या-मरतसेन ), 12 मवदत्त, 13 मथुग. नाथ, 14 म. म. मल्लिनाथ, 15 महादेव विद्यावागीश, 16 रामचन्द्रशेष, 17 वंशीवदन शर्मा 18 विद्याधर, 19 विद्यारण्य योगी, 20 विश्वेश्वराचार्य, 21 श्रीदत्त, 22 श्रीनाथ और 23 सदानन्द / उक्त शर्माजी ने इन टीकाकारोंके रचित ग्रन्थों तथा टोकाओं के नाम भी लिखे हैं, उसे निज्ञासुओं को वहीं देखना चाहिये। उन टीकाओं में म० म० नारायण भट्ट रचित 'नैषधप्रकाश' तथा म म मल्लिनाथ रचित 'जीवात' नामकी टीकाओंको विद्वानोंने सर्वश्रेष्ठ माना है। 'नैषधप्रकाश' टोका हो 'नारायणी' नामान्तरसे भी प्रसिद्ध है। इन दो टीकाओं में नारायणी टोका अत्यधिक विस्तृत एवं खण्डान्वय मुखसे लिखी गयी है और 'जीवातु' टीका सम्प्रति प्रचलित दण्डान्वय प्रणालासे लिखी गयी है, इसी लिए सुरमारतीके अन्यतम सेवक एवं प्रायः सहस्र आर्ष संस्कृत ग्रन्थों के मुद्रक तथा प्रकाशक स्वनामधन्य गोलोकवासी श्रीमान् श्रेष्ठिवर्य श्री हरिदास जी गुप्त के सुपुत्र बाबू जयकृष्णदास जी गुप्त 'महोदय ने इस नैषधचरित महाकान्यकी जीवातु' टीकाको वर्तमानमें राष्ट्रभाषा हिन्दीका युग होने से हिन्दी अनुवाद के सहित प्रकाशित करनेका निर्णय किया। किन्तु प्रयत्न करने पर भी अन्तिम सर्गकी 'जीवातु' टीका नहीं उपलब्ध हो सकी, अतएव इस 22 वें सर्गमें 'नैषध प्रकाश' टीका ही दी गयी है। _ 'मणिप्रभा' हिन्दी टीकाउक्त निर्णय करनेके अनुसार, प्रकाशक महोदयने इस महाकाम्यका हिन्दी अनुवाद करनेका मार मुझे सौपा। कार्याधिक्य रहनेपर भी मैंने उनके सौजन्यपूर्ण व्यवहार एवं