________________ भूमिका अपने साथ निकट सम्बन्धसे विवश होकर इसे स्वीकार कर लिया / जब यह गुरुतर भार मेरे कन्धोंपर आया, तब मैंने सोचा एवं प्रकाशक महोदय के साथ विमर्श भी किया कि मूल श्लोकों के साथ म० म० मल्लिनाथकृत 'जीवातु' टीका तो मुद्रित हो ही रही है, अत एव यदि 'नैषधप्रकाश' ( नारायणी ) टीकाका आश्रय लेकर हिन्दी अनुवाद किया जाय तो विद्वानों तथा विशेषतः नैषधपिपठिषु छात्रोंको दोनों टीकाओं में आये हुए विषयोंका ज्ञान हो जायगा और प्रायः प्रत्येक श्लोक, पाद एवं शम्दमें नैषध अर्थबाहुल्य है वह मी सर्वसाधारणके समक्ष आकर ग्रन्थगौरव सुरक्षित रहेगा / इसी विचार के भाधार पर मैंने 'मणिप्रमा' नामक हिन्दी टीका लिम्बना भारम्भ कर दिया / 'नैषधप्रकाश' तथा 'जीवातु' टोकाओं के अनुसार मूल श्लोकों में अनेकत्र पाठभेद है, मतः मैंने 'जावातु' टीकाके अनुमार पाठ मानकर हो हिन्दी टोकामें पहले 'नीवातु' के मनुसार तथा बादमें 'नैषध प्रकाश' के अनुसार विविधार्थीको लिखा है। जहां पर पाठभेदके कारण सर्वथा अर्थमित्रताका अवसर आया है वहांपर 'जीवातु के अनुसार ही पहला अर्थ लिखा गया है और पाठान्तर में द्वितीय अर्थ / इन अनेक अर्थोको बार बार आचन्त लिखने में ग्रन्थका भाकार ड्योढा दूना हो जाता, अत एव पक्षान्तरीय अर्थको कोष्ठकमें लिख दिया गया है और यही कारण है कि कई स्थलों में हिन्दी कुछ क्लिष्ट हो गयी है और कथाक्रमको विच्छिन्न करती-सी प्रतीत होती है। इस दोषको दूर करने के लिए ही प्रायः सभी स्थलों में लोकों के मूह अर्थ करने के उपरान्त [ ] ऐसे कोष्ठकके भीतर पूरे श्लोकका विशद आशय विशुद्ध हिन्दी में स्पष्ट कर दिया गया है और अनेक स्थलों में गुरुपरम्परागत भभिप्रायोको भी लिखकर ग्रन्यकी ग्रन्थियों को सुलझानेका यथासम्भव प्रयत्न किया गया है, क्योंकि प्रन्थकारने कतिपय स्थलों में जान-बूझकर स्वमेव ग्रन्थियों को प्रयत्नपूर्वक रखनेको लिखकर अपनेको बुद्धिमान मानकर पढ़ने का प्रयत्न करते हुए तथा श्रद्धापूर्वक गुरुसेवासे हो उन ग्रन्थियों को समझकर हम महाकाव्यके रसका आनन्द लनेके लिये कहा है 'अन्धग्रन्थिरिह कचित्कचिदपि न्यासि प्रयत्नान्मया प्राज्ञम्मन्यमना हटेन पठिनी माऽस्मिन् खलः खेलतु / श्रद्वारागुरुरलयीकृतहढग्रन्थिः समासादय. स्वेतकाव्यरसोमिमजनसुखं प्यासज्जनं सजनः // ' (प्रशस्ति 3) श्रीहर्षके पौराणिक ज्ञान के विषय में हम पहले हो लिख चुके हैं। अनेक स्थलों में उन्होंने पौराणिक विषयोंका वर्णन किया है, उनकी मी तत्तस्थलों में पौराणिक कथाएं लिख दी गयी है। मल्लिनाथने बहुतसे श्लोकों की व्याख्या स्क्षेप मानकर नहीं की है, उन श्लोकोंका मी 'नैषधप्रकाश' व्याख्या सहित हिन्दी अनुवाद तत्तत्स्थलों में कोष्ठकमें लिखा गया। प्रत्येक सर्गकी कथाका सारांश संक्षिप्त रूपमे विषयमूची में लिखा गया है। श्रीहर्ष बहत से सूक्तिपद कण्ठस्थ करने योग्य है, लोकोक्तियां भी पर्याप्त मात्रामें विद्यमान है सर्वसुविधा के लिए इन्हें भी संग्रहीत कर दिया गया है। मूल तथा प्रक्षिप्त श्लोकों की कारादिक्रमसे