Book Title: Kasaypahudam Part 03
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [द्विदिविहत्ती ३ ४६. देवाणं णारगभंगो। भवणादि जाव सहस्सार त्ति उक्क० अोधभंगो । अणुक्क० केव० ? जह० एगसमो, उक्क० अप्पप्पणो उक्कस्सहिदी । आणदादि जाव सव्वह० मोह० उक्क० केव० ? जहण्णुक्क० एगसमत्रो । अणुक्क० जह० जहण्णहिदी. समऊणा, उक्क० उक्कस्सहिदी संपुण्णा ।
$ ५० एइंदिएसु मोह० उक्क० जह० एगसमो, उक्क० एगस० । अणुक्क० जह० खुद्दाभवग्गहणं, उक्क० अणंतकालमसंखेजा पोग्गलपरियट्टा। एवं बादरेइंदिय० । णवरि अणुक्कस्सहिदीए उक्कस्सकालो बादरहिदी । बादरेइंदियपज्ज० उक्कस्सहिदीए एइंदियभंगो । अणुक्क० केव० ? जह० अंतोमुहुत्तं (एगसमयूणं), उक्क० संखेज्जाणि वाससहस्साणि।
उत्पन्न होनेके पहले समयमें अपनी पर्यायमें सम्भव स्थितिकी अपेक्षा मोहनीयकी उत्कृष्ट स्थिति पाई जाती है अतः इनके मोहनीयकी उत्कृष्ट स्थितिका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय कहा। तथा इस एक समयको कम कर देनेपर अनुत्कृष्ट स्थितिका जघन्यकाल एक समय कम खुद्दाभवग्रहण प्रमाण प्राप्त होता है। तथा पंचेन्द्रिय तिर्यञ्च लब्ध्यपर्याप्तकका उत्कृष्ट काल अन्तमुहूर्त बतलाया है, अतः अनुत्कृष्ट स्थितिका उत्कृष्ट काल अन्तमहर्त प्राप्त होता है। मनुष्य लब्ध्यपर्याप्तकोंके भी इसी प्रकार उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट स्थितिका काल घटित कर लेना चाहिए ।
४६. देवोंके उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट स्थितिका काल नारकियों के समान जानना चाहिये। भवनवासियोंसे लेकर सहस्रारस्वर्ग तकके देवोंके उत्कृष्ट स्थितिका सत्त्वकाल ओघके समान है। अनुत्कृष्ट स्थितिका सत्त्वकाल कितना है ? जघन्य काल एक समय और उत्कृष्टकाल अपनी अपनी उत्कृष्ट स्थिति प्रमाण है। आनतसे लेकर सर्वार्थसिद्धि तकके देवोंके मोहनीयकी उत्कृष्ट स्थितिका सत्त्वकाल कितना है ? जघन्य और उत्कृष्ट दोनों सत्त्वकाल एक समय है। अनुत्कृष्ट स्थितिका सत्त्वकाल कितना है ? जघन्य एक समय कम अपनी अपनी जघन्य स्थिति प्रमाण है और उत्कृष्ट अपनी अपनी सम्पूर्ण उत्कृष्ट स्थिति प्रमाण है ।
विशेषार्थ-आनतसे सर्वार्थसिद्धितकके देवोंके मोहनीयकी उत्कृष्ट स्थिति भवके पहले । समयमें ही सम्भव है, अतः इनके उत्कृष्ट स्थितिका जघन्य और उत्कृष्टकाल एक समय कहा। तथा इस एक समयको कम कर देनेपर अनुत्कृष्ट स्थितिका जघन्यकाल एक समय कम अपनी जघन्य स्थिति प्रमाण प्राप्त होता है । तथा अनुत्कृष्ट स्थितिका उत्कृष्ट काल अपनी अपनी उत्कृष्ट स्थिति प्रमाण है यह स्पष्ट ही है। यहाँ इतना विशेष जानना चाहिए कि सर्वार्थसिद्धिमें जघन्य और उत्कृष्ट आयु नहीं होती अतः वहाँ अनुत्कृष्ट स्थितिका जघन्यकाल एक समय कम तेतीस सागर और उत्कृष्ट काल पूरा तेतीस सागर होगा। शेष कथन सुगम है ।
५०. एकेन्द्रियोंमें मोहनीयको उत्कृष्ट स्थितिका जघन्य और उत्कृष्ट सत्त्वकाल एक समय है। तथा अनुत्कृष्ट स्थितिका जघन्य सत्त्वकाल खुद्दाभवग्रहणप्रमाण और उत्कृष्ट अनन्त काल है जो असंख्यात पुद्गल परिवर्तनप्रमाण है। इसी प्रकार बादर एकेन्द्रिय जीवोंके कहना चाहिये । पर इतनी विशेषता है कि इनके अनुत्कृष्ट स्थितिका उत्कृष्ट सत्त्वकाल बादर स्थिति प्रमाण है। बादर एकेन्द्रिय पर्याप्तकोंके उत्कृष्ट स्थितिका सत्त्वकाल एकेन्द्रियोंके समान है। तथा इनके
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