Book Title: Kasaypahudam Part 02 Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri Publisher: Bharatiya Digambar SanghPage 22
________________ विषयसूची . २३७ २३९ एक विभक्तिस्थानका उत्कृष्टकाल २३६ भंग निकालनेकी दूसरी विधि ३००-३१० दो प्रकृतिकस्थानका जघन्यकाल समस्त मंगोंका जोड़ " उत्कृष्टकाल २३८ आदेशमें भंगोका निरूपण . ३१२-३१५ तीन प्रकृतिकस्थानका जघन्यकाल उच्चारणाचार्यके उपदेशानुसार शेष अनुयोग" उत्कृष्टकाल २३९ द्वारोंका कथन चार प्रकृतिकस्थानका जघन्यकाल भागाभागानुगमका कथन ३१६-३१८ " उत्कृष्टकाल २४० परिमाणानुगमका कथन ३१९-३२३ पांच प्रकृतिकस्थानका काल २४३ क्षेत्रानुगमका कथन : ...३२४-३२६ ग्यारह प्रकृतिकस्थानका काल २४४ स्पर्शानुगमका कथन ३२६-३३४ बारह प्रकृतिक " " २४५ कालानुगमका कथन ३३४-३४ तेरह प्रकृतिक , , अन्तरानुगमका कथन ३४४-३५२ बारह प्रकृतिकस्थानके जघन्यकालके विषय भावानुगमका कथन ३५२ में विशेष कथन २४६ पदविषयक भल्पबहुत्षका ओघकथन ३५३ इक्कीस प्रकृतिकस्थानका काल " २४७ " आदेशकथन ३५५ बाईस ર૪૮ आचार्य यतिवृषभके द्वारा जीवविषयक अल्प तेईस बहुत्वका कथन ३५९-३७५ चौबीस २४९ वीरसेन स्वामीके द्वारा प्रत्येकके अल्प- . छन्वीस २५२ बहुत्वका उपपादन ३५९-३७५ सचाईस २५४-२५५. | उच्चारणाचार्यके अनुसार आदेशमें अल्पवहुत्व अहाईस २५५-२५६ का कथन ३७५-३८३ उच्चारणाचार्यके उपदेशानुसार आदेशमें भुजगार अनियोगद्वारका कथन कालका कथन २५६-२८० भन्तरानुगमका कथन २८१ भुजकारविभक्तिके सतरह अनुयोगद्वार ३८४ एक प्रकृतिकस्थानका अन्तर नहीं २८१ समुत्कीर्तनानुगमका कथन २३ से लेकर दो प्रकृतिक स्थानों तकका स्वामित्वानुगमका कथन ३८६ भी अन्तर नहीं २८२ एक जीवकी अपेक्षा कालका कथन ३८७ चौबीस प्रकृतिकस्थानका जघन्य अन्तर २८२ | शेष अनुयोग द्वारोका कथन न करके ___" " उत्कृष्ट अन्तर २८३ यतिवृषभने कालका ही कथन क्यों किया छब्बीस प्रकृतिकस्थानका जघन्य अन्तर २८३ इसका समाधान छन्वीस प्रकृतिकस्थानका उत्कृष्ट अन्तर २८४ भुजकारका स्वरूप ३८८ सचाईस प्रकृतिकस्थानका जघन्य अन्तर " अवस्थित विभक्तिस्थानके कालके तीन भंग ३८९ , उत्कृष्ट अन्तर २८५ | उपाधपुद्गलका अर्थ ३९१ अट्ठाईस प्रकृतिकस्थानका जघन्य अन्तर " उच्चारणाके अनुसार आदेशमें कालका , उत्कृष्ट अन्तर २८६ कथन उच्चारणाचार्यके उपदेशानुसार आदेशमें उच्चारणाके अनुसार शेष अनुयोगद्वारोंका अन्तरकालका कथन २८७-२९२ कथन नानाजीवोंकी अपेक्षा भंग विचयानुगम २९२ अन्तरानुगमका कथन भजनीयपदोंके भंग लानेकी विधि नाना जीवोंकी अपेक्षा भंग विचयानुगम ४०२ विधिकी उपपति २९४-२९९ परिमाणानुगमका कथन ४०४ ३८४-१२४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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