Book Title: Kasaypahudam Part 02
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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विषयसूची
पृ० | विषय
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१५
विषय बाईसवी गाथा
१ मूलप्रकृतिविभक्ति
२२-७६ बाईसवीं गाथाका अर्थ
२-३ | मूलप्रकृतिविभक्तिके आठ अनुयोगद्वार २२ आचार्ययतिवृषभके चूर्णि सूत्रका आश्रय लेकर उच्चारणाचार्यने मूलप्रकृति विभक्तिके १७ विभक्तिका कथन
४-१३ | अर्थाधिकार कहे हैं और यतिवृषभने आठ, विभक्ति शब्दके आठ अर्थ
दोनों में विरोध क्यों नहीं है ? नामविभक्ति और स्थापनाविभक्तिका अर्थ ५ आठ अधिकारोंके द्वारा शेषका ग्रहण द्रव्य विभक्तिका कथन ५-६ | समुत्कीर्तनानुगमका कथन
२३ क्षेत्रविभक्तिका कथन
७ | सादि अनादि ध्रुव और अध्रवानुगमका कथन २४-२५ कालविभक्तिका कथन स्वामित्वानुगमका कथन
२६ संस्थानविभक्तिका कथन
९-११ कालानुगमका कथन
२७-४४ भावविभक्तिका कथन
१२-१३
अन्तरानुगमका कथन आचार्य यतिवृषभने चूर्णिसूत्रमें २ का अंक
नाना जीवोंकी अपेक्षा भंगविचयानुगम ४४-४६ क्यों रक्खा, इसका खुलासा
भागाभागानुगम
४७-४९ २ के अंकसे सूचित अर्थका कथन
परिमाणानुगम
४९-५३ उक्त विभक्तियोंमेंसे यहां कर्म विभक्ति नामकी
क्षेत्रानुगम
५३-५९ . द्रव्यविभक्तिसे प्रयोजन है इसका कथन १६ | स्पर्शनानुगम अपने द्वारा माने गये अर्थाधिकारोंको गाथा
नाना जीवोंकी अपेक्षा कालानुगम ७१-७४ सूत्रमें दिखलानेके लिये आचार्य
, , , अन्तरानुगम ७४-७७ यतिवृषभके द्वारा २२ वी गाथाका
भावानुगमका कथन
७७-७८ व्याख्यान
१७-१८ अल्पबहुत्वानुगमका कथन
७८-७९ -पदके भेद और उनका अर्थ
एकैक उत्तरप्रकृति विभक्ति ८०-१९८ यतिवृषभके अभिप्रायसे इस गाथासे ६ अर्थाधिकार सूचित होते हैं और गुणधरा
उत्तरप्रकृतिविभक्तिके भेद चार्यके अभिप्रायसे दो ही अर्थाधिकार
एकैक उत्तर प्रकृतिविभक्तिका स्वरूप बतलाये हैं इसका कथन
प्रकृतिस्थान उत्तर प्रकृतिविभक्तिका स्वरूप प्रकृति विभक्तिका कथन करनेकी प्रतिज्ञा
एकैक उत्तर प्रकृतिविभक्तिके अनुयोगद्वार यतिवृषभका कथन गुणधराचार्यके प्रतिकूल
उच्चारणाचार्यके द्वारा कहे गये २४ अनुयोगनहीं है इसका कथन .
__ द्वारों और यतिवृषभाचार्यके द्वारा कहे
गये ११ अनुयोगद्वारोंमें अविरोधका प्रकृति विभक्तिके भेद
कथन मूलप्रकृतिके साथ विभक्ति शब्द रखने में
८०-८१ आपत्ति तथा उसका परिहार
किस अनुयोगका किस अनुयोगमें संग्रह यहां मोहनीय कर्मकी ही विवक्षा क्यों है?
किया गया है, इसका कथन ८१-८२ - इसका समाधान
समुत्कीर्तनाका कथन.. ८३-८७ आठों कर्मो में प्रकृति विभक्ति यानी स्वभाव
सर्वविभक्ति नोसर्वविभक्तिका कथन ८८ भेदका कथन
उत्कृष्टविभक्ति अनुत्कृष्ट विभक्तिका कथन ,
८०
२०
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