Book Title: Karmagrantha Part 6
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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एक संग्रह ग्रन्थ है । इसमें अन्तिम प्रकरण सप्तसिका है। आचार्यं अमितगति ने इसी के आधार से संस्कृत पंचसंग्रह की रचना की है. जो गद्य-पद्य का उभय रूप है और इसमें १३०० से अधिक गाथाएँ हैं ।
इसके अतिरिक्त दो प्रकरण शतक और सप्ततिका कुछ पाठ-भेद के साथ श्वेताम्बर परम्परा में प्रचलित शतक और सप्ततिका से मिलते-जुलते हैं । प्रस्तुत सप्ततिका में ७२ और दिगम्बर परम्परा की सप्ततिका में ७९ गाथाए हैं। इनमें से ४० गाथाओं के करीब तो एक जैसी हैं, १४-१५ गाथाओं में कुछ पाठान्तर है और शेष गाथाएं अलगअलग हैं। इसका कारण मान्यता-भेद और शैली का भेद हो सकता है। फिर भी ये मान्यता-भेद सम्प्रदाय-भेद पर आधारित नहीं हैं । इसी प्रकार कहीं कहीं वर्णन करने की शैली में भेद होने से गाथाबों में अन्तर आ गया है । यह अन्तर उपशमना और क्षपण प्रकरण में देखने को मिलता है ।
इस प्रकार यद्यपि इन दोनों सप्ततिकाओं में भेद पड़ जाता है, तो भी ये दोनों एक उद्गम स्थान से निकल कर और बीच-बीच में दो धाराओं से विभक्त होती हुई अन्त में एक रूप हो जाती हैं ।
सप्ततिका के बारे में प्रायः आवश्यक बातों पर प्रकाश डाला जा चुका है, अतः अब और अधिक कहने का प्रसंग नहीं है ।
इस प्रकार प्राक्कथनों के रूप में कर्मसिद्धान्त और कर्मग्रन्थों के बारे में अपने विचार व्यक्त किए हैं। विद्वद्वर्ग से सानुरोध आग्रह है कि कर्मसाहित्य का विशेष प्रचार एवं अध्ययन अध्यापन के प्रति विशेष लक्ष्य देने की कृपा करें।
— श्रीचन्द सुराना
- देवकुमार जैन