Book Title: Karmagrantha Part 6
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
View full book text
________________
( २५ ) शिष्य-परिवार था या नहीं ? आदि के बारे में कुछ भी नहीं कहा जा सकता है । परन्तु कुमारपाल प्रबन्ध में आगत उल्लेख से उनके आचार्य हेमचन्द्र और महाराज कुमारपाल के समकालीन होने का अनुमान लगाया जा सकता है।
आचार्य मलयगिरि ने अनेक ग्रंथों की टीकाएँ लिखकर साहित्य कोष को पल्लनित किया है। श्री जन आत्मानन्द ग्रंथमाला, भावनगर द्वारा प्रकाशित टीका से आचार्य मलयगिरि द्वारा रचित टीकाग्रंथों की संख्या करीब २५ की जानकारी मिलती है। इनमें से १७ ग्रंथ तो मुद्रित हो चुके हैं और छह ग्रंथ अलभ्य हैं।
उक्त टीकाओं को देखने से यह स्पष्ट हो जाता है कि उन्होंने प्रत्येक विषय का प्रतिपादन बड़ी सफलता से किया है और जहां भी नये विषय का संकेत करते हैं, वहीं उसकी पुष्टि के प्रमाण अवश्य देते हैं। इसीलिए यह कहा जा सकता है कि वैदिक साहित्य के टीकाकारों में जो स्थान निरति है, जैन साहित्य में वही स्थान आचार्य मलयगिरि सूरि का है । अन्य सप्ततिकाएँ
प्रस्तुत सप्ततिका के सिवाय एक सप्ततिका आचार्य चन्द्रर्षि महत्तर कृत पंचसंग्रह में संकलित है। पंचसंग्रह एक संग्रहग्रन्थ है और यह पाँच भागों में विभक्त है । उसके अन्तिम प्रकरण का नाम सप्ततिका
पंचसंग्रह की सप्ततिका की अधिकतर गाथाएँ प्रस्तुत सप्ततिका से मिलता-जुलती है और पंचसंग्रह की रचना प्रस्तुत सप्ततिका के बहुत बाद हुई है तथा उसका नाम सप्ततिका होते हुए भी १५६ गाथाएँ हैं । इससे ज्ञात होता है कि पंचसंग्रह की सप्ततिका का . आधार यही सप्ततिका रहा है ।
एक अन्य सप्ततिका दिगम्बर परम्परा में भी प्रचलित है, जो प्राकृत पंचसंग्रह में उसके अंगरूप से पायी जाती है। प्राकृत पंचसंग्रह